Gajanan Maharaj

Wednesday, May 27, 2020

Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-15


अध्याय पन्द्रहवॉं

तिलक देत व्याख्यान


९९४ सन उन्नीस सौ आठ की, चार मई शनिवार। शहर अकोला में सभा, जनता भीड़ अपार ॥
९९५ शिवा जयन्ती मन रही, जन आन्दोलित होय। उत्सव की तैयारियाँ, एक माह से होय ॥
९९६ शिव जयन्ति उत्सव जमे, बड़े -बड़े विद्वान। खापर्डे कोल्हटकर, दामले पटवर्धन ॥
९९७ बाल गंगाधर तिलक, सभापति पद पाय। तिलक अकोला आयेंगे, जनता हर्ष मनाय ॥
९९८ दूध में पड़े शर्करा, शोभा दिव होगी। उत्सव में आयें अगर, श्री गजानन योगी ॥
९९९ कुछ सदस्य प्रस्ताव का, करने लगे विरोध। भरी सभा में औलिया, डालेगा गतिरोध ॥
१००० नंगा घूमेगा सभा, गिण गिण बोले बोल। नहीं ठिकाना मार दें, लोकमान्य को धौल ॥
१००१ श्री गजानन के चरण, सभा माहि पड़ जाय। ऐसा तर्क करे बाकी, निर्णय भी हो जाय ॥
१००२ दादा खापर्डे गये, आमंत्रण के काज। सभा हेतु हम आयेंगे, देते श्री आवाज ॥
१००३ उत्सव में हम आय के, बैठ रहेंगे मौन। बाल तिलक जैसा यहाँ, देश उद्धारक कौन ॥
१००४ अण्णा पटवर्धन वहाँ, नरसिंह जी के शिष्य। ये दो महान आत्मा, मिलने आयं अवश्य ॥
१००५ श्री की बातें सुनते ही, खापर्डे आनन्द। देखो श्री जी जानते, हुए अकोला द्वन्द ॥ 
१००६ इनका ज्ञान अगाध है, य तिरकाली सन्त। बोलें हम उसके पहले, हाँ कह देवें सन्त ॥
१००७ लहर ख़ुशीकी छा गई, विदर्भ में चहुँ ओर। सभा दिवस सब चल पड़े, शहर अकोला ओर ॥
१००८ भाषण सुनने तिलक का,श्री के दर्शन पाय। सभा मंच मैदान में, जनता नहीं समाय ॥
१००९ तिलक आदि विद्वान सभी, मण्डप विराजमान। महाराज श्री को दिया, विशेष आसन मान ॥
१११० सभा कार्यक्रम शुरू हुआ, तिलक देय व्याख्यान। वीर शिवा के चरित का, करने लगे बखान ॥
११११ रामदास स्वामी दिये, शिवाराज आशीष। श्री गजसनना आय यहाँ, आज देत आशीष ॥
१११२ जो समाज आज़ाद नहीं, वह नाही जीवन्त। राष्ट्रप्रेम जिससे बढ़े, वह शिक्षा गुणवन्त ॥
१०१३ ऐसी शिक्षा देश में, आज जरूरी होय। पर क्या इस सरकार से, ऐसी आशा होय ॥
१०१४ लोकमान्य आवेश में, भाषण करते जायं। अंगरेजी सरकार को, ताने मारत जायं ॥
१०१५ श्री समर्थ ने बीच में, दिया तिलक को रोक। हथकड़ियाँ पड़ जायगी, हँसते- हँसते रोक ॥
१०१६ ऐसा कहकर गजानना, गणगणगणात बोल। सभा विसर्जन हो गई, ताल बजायें टोल ॥
१०१७ सभा बीच श्री जस कहें, वैसा ही हो जाय। उसी साल में बाल तिलक, गिरफ़्तार हो जाय ॥
१०१८ चलने लगा मुकद्दमा ,सख्त होय सरकार। कोशिश मित्र वकील करें, ना माने सरकार ॥ 
१०१९ दादा खापर्डे बड़े, बैरिस्टर कहलायं। श्री से मिलने वास्ते, कोल्हटकर भिजवायं ॥
१०२० कोल्हटकर शेगांव में, श्री से मिलने आय। महाराज तो शयन में, तीन दिवस हो जाय ॥
१०२१ कोल्हटकर मन्दिर रुके, स्नेह तिलक से होय। चौथे दिन श्री जी उठे, मुलाकात तब होय ॥
१०२२ कैद शिवाजी भी हुए, गुरु यद्द्पि रामदास। राज क्रान्ति होवे तभी, सज्जन पायें त्रास ॥
१०२३ यह मैं भाकर दे रहा, तुरतहि तिलक खिलाय। इस भाकर की जोर पर, काम बड़ा कर जाय ॥
१०२४ कोल्हटकर मुम्बई गये, भाकर तिलक खिलाय। सत्य कहें श्री गजानना, तिलक रहे मुसकाय ॥
१०२५ यश नाही मिलना तुम्हें, यत्न होय बेकार। न्याय नहीं देगी हमें, अंगरेजी सरकार ॥
१०२६ किन्तु हमारे हाथ से, काम बड़ा एक होय। गजानना यह जो कहा, बात गूढ़ की होय ॥
१०२७ सन्त जानते भुत भविष, वे जाने वर्तमान। देखें आगे होय क्या, हम तो हैं अनजान ॥
१०२८ तिलक गये फिर जेल में, काम बड़ा हो जाय। गीता रहस्य नाम का, ग्रंथ बड़ा लिख पाय ॥
१०२९ अमर हो गये बाल तिलक, जब तक गीता होय। धर्म सनातन काल तक, कीरत अखंड होय ॥ 
 
Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-15
Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhayay-15

सब कुछ है इस देश में क्यों विदेश को जाय


१०३० श्रीधर गोविन्द नाम था, काळे था उपनाम। कोल्हापुर में वास करे, मिले ना कुछ भी काम ॥
१०३१ मैट्रिक उसने पास की, पर था इंटर फेल। पढ़ने का शौकीन था, हवा बनाय महैल ॥
१०३२ ओयोमा टोगा चरित, पढ़ा एक अख़बार। मन विचार ऐसा उठे, मैं भूमी पर भार ॥
१०३३ विदेश जाकर सीख लूँ, विद्या ऐसी कोय। टोगो यामा जस किया, देश लाभ तो होय ॥
१०३४ विदेश जाने के लिये, पैसे की दरकार। पैसा मिलने की जुगत, करे गरीब विचार ॥
१०३५ एक मित्र के साथ जब, भंडारा से आय। कीरत सुनी गजानना, शेगांव उतर जाय ॥
१०३६ आतुर मन वह गजानना, के मन्दिर में आय। प्रणाम श्रीजी को करे, सम्मुख बैठ जाय ॥
१०३७ श्री जी तो पहिचानते, श्रीधर किया विचार। विदेश जाने की इच्छा, तेरी है बेकार ॥
१०३८ सब कुछ है इस देश में, पागलपन तू छोड़। सेवा कर अध्यात्म की, ज्ञान भौतिकी छोड़ ॥
१०३९ कान पड़े श्री शब्द जो, श्रीधर चौंका जाय। कोल्हापुर के गुरु की, याद उसे आ जाय ॥
१०४० श्री फिर चिल्लाए कहा, तू कहीं ना जाना। अगणित पुण्य करे जनम, भारत में पाना ॥
१०४१ योग शास्त्र ही श्रेष्ठ है, भौतिक शास्त्र नहीं। जो भी जाने योग को, भौतिक मान्य नहीं ॥
१०४२ योग शास्त्र से भी अधिक, अध्यातम का ज्ञान। कोशिश कर तू जान ले, होगा तब कल्यान ॥
१०४३ श्रीधर श्री जी की बातें, दत्त चित्त सुन जाय। विचार उसके बदल गये, मन आनन्द समाय ॥
१०४४ महाराज आशीष दें, अब जा कोल्हापुर। घर पर तेरी भार्या, राह तके मजबूर ॥
१०४५ श्रीधर वापस आय के, आगे शिक्षा पाय। शिवपुरी के कॉलेज का, प्रिंसीपल हो जाय ॥
१०४६ इस धरती पर सन्त ही, ईश्वर के हैं रूप। सन्तों के आशीष मिले, वह धरती पर भूप ॥
१०४७ गण गण गणात बोते बोल, जय जय गजानना। राणा हैं शेगांव के, योगी गजानना ॥

श्री हरिहरार्पणमस्तु ॥ शुभं भवतु ॥

(पन्द्रहवाँ अध्याय समाप्त )




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