Gajanan Maharaj

Wednesday, May 27, 2020

Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-21


अध्याय इक्कीस


पकड़त हाथ मजूर

 १४२४ बाद समाधी गजानना, यह लीला हो जाय। मन्दिर के निर्माण का, काम शुरू हो जाय ॥
 १४२५ काम चल रहा शिखर पर, मिस्त्री संग मजूर। काम करत झोंका गया, नीचे गिरा मजूर ॥
 १४२६ तीस फूट नीचे पत्थर, उस पर गिरा मजूर। उसको गिरते देख सभी, समझे मरा मजूर ॥
 १४२७ पर लीला श्री गजानना, साबुत बचा मजूर। गेन्द खिलाडी झेलता, वैसे झिला मजूर ॥
 १४२८ महाराज ने थाम लिया, कहने लगा मजूर। भू पर छोड़े गजानना, पकड़त हाथ मजूर ॥

खम्भ चढ़ाय गजानना ,तन से भूत उतार

१४२९ जयपुर की जनानी को, बाधा भूत सताय। दत्तात्रय भगवान उसे, साक्षात्कार कराय ॥
१४३० रामनवमि शेगांव जा, गजानना की ज्योत। वहाँ पहुंच पिश्शाच से, मुक्ती तेरी होत ॥
१४३१ महिला सपना देखकर, जा पहुंची शेगांव। राम नवमि उत्सव मने, धूम मची शेगांव ॥
१४३२ पत्थर के खम्भे लगे, मण्डप बड़ा बनाय। नवमी दिन उत्सव बड़ा, उमड़ा जन समुदाय ॥
१४३३ जयपुर की महिला खड़ी, भीड़ पड़ी घबराय। खम्भे से टिक जाय तो, खम्भ गिरा अर्राय ॥
१४३४ खम्भ गिरा महिला दबी, भगदड़सी मच जाय। महिला के मुखमें तुरत, कुछ जल डाला जाय ॥
१४३५ हटाय पत्थर फिर उसे, अस्पताल ले जाय। जांच बाद सर्जन कहीं, चोट न तन पर पाय ॥
१४३६ पांच फीट लम्बा रहा, डेढ़ फीट मोटाय। पत्थर कुचला तन मगर, महिला चोट न आय ॥
१४३७ समझ गये सब देखकर, दैवीय चमत्कार। खम्भ चढ़ाय गजानन, तन से भूत उतार ॥
 
Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-21
Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-21

गोसाई के भेष में सन्त गजानन होय

१४३८ रामचन्द्र पाटिल घर, पधारते अवतार। गोसाई के रूप में, भिक्षा मांगे द्वार \
१४३९ रामचन्द्र गोसाय को, भीतर लेकर जाय। आसन पर बैठालकर, पूजन पाद कराय ॥
१४४० थाली भोज सजाय के, गोसाई खिलवाय। पांच रूपये दक्षिणा, भोजन बाद दिवाय
१४४१ रुपये की दक्षिणा नहीं, मैं चाहूं कुछ और। सम्भालो तुम गजानना, मठ की बाग डोर ॥
१४४२ सेवा की कर साधना, मिट जाये सुत त्राण। पत्नी को आरोग्य मिले, होगा तब कल्याण ॥
१४४३ तू पाटिल है गांव का, गुरुतर है यह काम। राग द्वेष से दूर रहो, पथ सन्नीती थाम ॥
१४४४ खर्च करो तो नहीं करो, आमद से अधिकाय। दूर दिखावे से रहो, सादा जीवन भाय ॥
१४४५ साधु सन्ता आय घर, स्वागत उनका होय। सन्त अनादर जो करे, कुपित ईश्वर होय ॥
१४४६ पुरखों की कमियाँ कभी, मन में नाही लाय। रिश्तेदार यथा समय, मान यथोचित पाय ॥
१४४७ जस कटहल अन्दर मधुर, बाहर कांटे होय। तस अन्तर कोमल तेरा, क्रोध बाहरी होय ॥
१४४८ पाटिल को समझाय के, गोसाई जी जाय। द्वार तलक तो दिख पड़े, फिर अदॄश्य हो जाय ॥
१४४९ रामचन्द्र पाटिल मन, चिन्तन ऐसा होय। गोसाई के भेष में, सन्त गजानन होय ॥

अवतरणिका

१४५० चरित गजानन सन्त का, भव से तारन हार। पारायण जो भी करे, उसकी नैया पार ॥
१४५१ अब सुनिये इस ग्रंथकी, अवतरणिका सुजान। चरित 'गजानन विजय' यह, पुस्तक बड़ी महान ॥
१४५२ अठारह सौ अठहत्तर, माह दूसरा आय। शनिवार तेईस तिथी, पर ब्रम्ह प्रगटाय ॥
१४५३ अन्न ब्रम्ह है जान लो, महाराज बतलाय। पंच तत्व से अन्न है, जीवन अन्न बनाय ॥
१४५४ जल ही जीवन है कहे, प्रथम पाठ अवतार। अन्न और जल जीव के, जीवन के आधार
१४५५ कथा बढ़ाये दास गणू, आगे का अध्याय। जित देखे उत गजानना, बंकट को सुध नाय ॥
१४५६ कीर्तन में गोविन्द के, श्री जी बैठे आय। पीताम्बर को राह में, चमत्कार दिखलाय ॥
१४५७ बोध दिया गोविन्द बुवा, जानो सोहं रूप। जस बोलो तस आचरण, समझाये जग भूप ॥
१४५८ कथा तीसरे पाठ में, गोसाई की आय। गजानन को गोसाई, गांजा रहा पिलाय ॥
१४५९ जानराव संकट टला, चरणामृत पिलवाय। सन्त मरण टाले नही, संकट तो टल जाय ॥  
१४६० दास गणू उल्लेख करे, मृत्यू तीन प्रकार। अध्यात्मिक अधि भौतिकी, अधिदैविक ये सार ॥
१४६१ विठुबा माली ढोंग करे, मार खाय भग जाय। भाव शुद्ध वा सत्य हो, ढोंगी ना मन भाय ॥
१४६२ जानकिराम नहीं देवे, अगन चिलम के काज। कीड़े इमली सार पड़े, लीला श्री महराज ॥
१४६३ गुझिया जो मटकी रखी, मांगे गजानना। माधव को यम लोक दिखा, मुक्त किये राणा ॥
१४६४ तिरकाली अन्तर्यामी, सच्चे सदगुरु होय। गुझिया मटकी में रखी, श्री जी जानत होय ॥
१४६५ प्रपंच में फँस जाय जो, आसक्ती अधिकाय। सुमिरन हरि का ना करे, जीवन में पछताय ॥
१४६६ वैदिक बामन बुलाय के, भोज करावे सन्त।यह अध्याय चतुर्थ की, मोहक कथा बसन्त ॥
१४६७ ऋतु वसन्त महिमा बड़ी, गीता भी बतलाय। गजानना पूजा करें, जन-जन को समझाय ॥
१४६८ शिव मन्दिर में बैठ गये, पदमासन योगी। बंकट पिंपलगांव से, ले आते योगी ॥
१४६९ इस पंचम अध्याय में, कूप किया जीवन्त। शिष्य भास्कर से मिले, इसी तरह से,सन्त ॥
१४७० भटके जंगल खेत में, क्या था इसका राज। नाम प्रसिद्धि ना चाहे, श्री योगी महराज ॥
१४७१ बंकटलाल लिवाय गये, श्री को मकई खेत। बर्र उठी सब भागते, सन्त परीक्षा लेत ॥
१४७२ तनसे कण्टक निकालकर, सिद्धयोग बतलाय। सरल नहीं था काम जो, सन्तप्रवर कर जाय ॥
१४७३ दो सन्तों की भेंट का, छठे पाठ वरणन। ब्रज भूषण को करा दिया, प्रातः रवि दर्शन ॥
१४७४ योग साधना जो करे, अहंकार यदि होय। तत्व बोध पाये नहीं, फंसा क्रिया में होय ॥
१४७५ मल्ल युद्ध मर्दन किया, हरि पाटिल का मान। पहला सुख आरोग्य का, फिर प्रपंच धनमान ॥
१४७६ पुत्र पाय खण्डू पाटिल, सप्तम पाठ पढ़ाय। साक्षात्कारी सन्त का, वचन व्यर्थ ना जाय ॥
१४७७ पाठ आठ वरणन किया, गांव पड़ी जो फूट। पाटिल से शेगांव के, रहे देशमुख रूठ ॥
१४७८ खण्डू संकट में धिरे, श्री धीरज बंधवाय। मुक़द्दमा चलता मगर, निर्दोषी छुड़वाय ॥
१४७९ तैलंगी विद्वान को, देते श्री जी सीख। वेद दिलावे मोक्ष पर, उच्चारण तो सीख ॥
१४८० जिस पलंग बैठे जोगी, वह जलने लग जाय। ब्रम्हगीर को बुलाय तो, डर से भागा जाय ॥
१४८१ ब्रम्हगीर को गजानना, तत्व ज्ञान बतलाय। धर्म और अध्यात्म का, बोध उसे करवाय ॥
१४८२ नवम पाठ में आय कथा, एक अश्व बिगड़ाय। आज्ञा माने सन्त की, शान्त होय जस गाय ॥
१४८३ दुष्ट और बिगड़ैल का, करने हेतु सुधार। ईशाज्ञा से सन्त लें, धरती पर अवतार ॥
१४८४ बालापुर के दो भगत, मन्नत भूले जायं। गांजा लाने की कहें, हाथ हिलाते आयं ॥
१४८५ बालकृष्ण को करा दिये, दर्शन राम दास। गुरूतत्व तो एक ही, अलग हाड़ अरु मांस ॥
१४८६ अमरावति श्रीसन्त गये, वरणन दश अध्याय। गणेश अप्पा चन्दा बाई, को पूजन मिल जाय ॥
१४८७ मन में श्रद्धा भाव हो, पूरा हो विश्वास। सन्त गरीबों की सदा, पूरी करते आस ॥
१४८८ महाराज जी स्थान बदल, मोटे मन्दिर आयं। पाटिल को समझाय कहें, यह आप के हिताय ॥
१४८९ जीवदया का मर्म भी, महाराज समझाय। गौमाता सुकलाल की, बन्धन मुक्त कराय ॥
१४९० भक्ती होय दिखावटी, ना गजानना भाय। लक्ष्मण मन की जान कर, श्री जी क्रोध जताय ॥
१४९१ एकादश अध्याय कथा, काटे भास्कर श्वान। पूर्वजन्म का बैर चुके, भास्कर करे प्रयाण ॥
१४९२ कागा यहाँ न आइयो, आज्ञा दें महराज। कागा फिर आये नहीं, लीला श्री महराज ॥
१४९३ कूएं की बारूद में, गणू श्रमिक फँस जाय। एक निष्ठ इस भक्त के, श्री जी प्राण बचाय ॥
१४९४ मन्दिर हो श्री राम का,  इच्छा बच्चूलाल। श्री के आशीर्वाद से, पूर्ण हुई तत्काल ॥
१४९५ पत्ते फूटे ठूंठ से, हरा हो गया आम। द्वादश पाठ अमर करे, पीताम्बर का नाम ॥
१४९६ अध्यातम आरोग्य पर, तेरहवां अध्याय। दान धर्म की सीख दे, निरोग कैसे पाय ॥
१४९७ फिजूल खर्ची रोक लगे, मंशा चौदस पाठ। बण्डू-तात्या की कथा, स्वर्ण मोहरें पात ॥
१४९८ उंकारेश्वर नर्मदा, रोके पराण अन्त। वीडा श्री जी भेजते, नाथ माधवा सन्त ॥
१४९९ पाठ पन्दरह बाल तिलक, होय सभा उल्लेख। जेल तिलक गीता लिखे, महाराज लें देख ॥
१५०० सब कुछ है इस देश में, श्रीधर को कह जाय। सेवा कर अध्यात्म की, क्यों विदेश को जाय ॥
१५०१ पुण्डलिक भेजी पादुका, पाठ सोलवां पाय। बिन खाए बैठे रहे, भाऊ भाकर लाय ॥
१५०२ तुकाराम सेवा करे, छर्रा बाहर आय। गजानना सच्चरित्र की, कथा मधुर भक्ताय ॥
१५०३ फिर सतरहवां पाठ सुनो, दिगम्बरा श्री साय। मुकदमा ख़ारिज हुआ, दण्ड भास्कर पाय ॥
१५०४ पकड़ केश महताब के, पीटें श्री महराज। यवन सन्त को पीटकर, समझाये महराज ॥
१५०५ हिन्दू मुसलिम एकता, में सबका कल्याण। सर्व धर्म कल्याण हो, सुख का यही प्रमाण ॥
१५०६ बापूराव पत्नी किया, श्री ने दॄष्टिपात। बाधा दूर हुई तुरत, भूतन तुरत भगात ॥
१५०७ रोग और बीमारियां, श्रद्धा से मिट जाय। अध्यातम आरोग्य का, सबसे सरल उपाय ॥
१५०८ पांव किये कुंए अन्दर, झांके श्री महराज। जल फुहार बरसन लगी, नहाय योगी राज ॥
१५०९ सन्तों के मन आय जो, ईश्वर करते पूर्ण। सत्य सन्त के वचन भी, सत्य होय सम्पूर्ण ॥
१५१० पति परायणा बायजा, कथा अठारह पाठ। पीड़ा भाऊ कवर की, दूर करें श्रीनाथ ॥
१५११ तीरथ ऊदी सन्त की, बीमारियां भगाय। कवर डाक्टर स्वस्थ किये, वैद गजानन साय ॥
१५१२ विठ्ठल दर्शन के लिये, श्री पंढरपुर जाय। रुकमिनिरमना रूप में, दरस बापुना पाय ॥
१५१३ पंढरि माली हैजे से, रक्षा सन्त कराय। संकट साथ न छोड़िये, ऐसी शिक्षा पाय ॥
१५१४ पद से छूएं श्वान को, वह जीवित हो जाय। चमत्कार यह देखकर, बामन शीश झुकाय ॥
१५१५ पाठ दीर्घ उन्नीसवां, सन्त समाधी पाय। इसी पाठ में दास गणू, कई कथा कह जाय ॥
१५१६ काशिनाथ की पीठ पर, कुहनी की दें  मार। ओहदा मुंसिफ का मिला, ऐसा मिलता तार ॥
१५१७ नागपुर का धन पति, छोड़े ना श्री सन्त। वैभव से बैराग था, नहीं रुके गुणवन्त ॥
१५१८ टेम्बे स्वामी आय रहे, दर्शन श्री महराज। बाला को उपदेश दें, श्री गजानन महराज ॥
१५१९ काशी विद्या पाय कर, लौटा आत्माराम। श्री चरणों अर्पण करे, सम्पति आत्माराम ॥
१५२० मारूती पटवारी के, गधे घुस गये खेत। महाराज लीला करें, जगाय तीमा देत ॥
१५२१ हवलदार नारायण जी, श्री की करे पिटाय। कुछी दिनों के बाद वह, स्वर्गवास हो जाय ॥
१५२२ संगमनेरी बामना, शुभ विवाह हो जाय। निमोणकर इंजीनियर, भक्ती में, लग जाय
१५२३ तुकाराम की प्रार्थना, फलीभूत हो जाय। पुत्र निरोगी हो गया, मठ में दिया रखाय ॥
१५२४ विठ्ठल मूरत सामने, बैठे श्री महराज।जाने की आज्ञा मंगे, अवतारी महराज ॥
१५२५ गुरुवार भादौ महिना, ऋषी पंचमी आय। चले गये निज धाम को, श्री गजानना साय ॥
१५२६ श्री समाधी के बाद में, श्री विहीन शेगांव। पाठ बीस गणपत भगत, बामन भोज कराय ॥
१५२७ समर्थ स्वामी गजानना, शरीर त्यागे बाद। लक्ष्मण जांजल दर्श दिये, मिटा दिया अवसाद ॥
१५२८ प्राण बचे माधव जोशी, नदिया आये पूर। सुभेदार व्यापारी का, घाटा होता दूर ॥
१५२९ भगत कवर रस्ता भूले, आ पहुंचे शेगांव। तीरथ ऊदी प्रदक्षिणा, पाटिल निष्ठा भाव ॥
१५३० एक गजानन सन्त की, लीला अमर अनन्त। वर्णन दोहों में करे, कवि असहाय सुमन्त

फल श्रुति

१५३१ दोहे पारायण करो, चरित गजानन साय। दर्शन को शेगांव चलो, कह सुमन्त कविराय ॥
१५३२ ग्रंथ गजानन चरित यह, इक्किस हैं| अध्याय सब मिले दोहे गाइये, मुदित होय मन काय
१५३३ अर्पण इक्किस पाठ के, मोदक गजानना। लेवें आशिर्वाद सब, पूरण मन कामना ॥
१५३४ चरित गजानन कल्पतरू, शाखा सब अध्याय। दोहे सारे पत्तियां,वाचन छाया पाय ॥
१५३५ भाव भक्ति इस ग्रंथ का, पारायण कर जायं। कोई रूप गजानना, तेरे घर आ जाय ॥
१५३६ चिन्तामणि यह ग्रंथ है, इच्छित फल मिल जाय। श्रद्धा वा विश्वास से, कार्य सभी सध जाय॥
१५३७ निर्धन को मिल जाय धन, रोगी होय निरोग। निपूत पारायण करे, बने पूत संयोग ॥
१५३८ दशमी एकादस बारस, पारायण कर जाय। गुरु पुष्य का योग हो, भाग्य द्वार खुल जाय ॥
१५३९ जहाँ रखा यह ग्रंथ हो, वह पावन है स्थान। भूत प्रेत आये नहीं, दूर होय सब त्राण ॥
१५४० चरणों में श्री गजानना, प्रीत रखे जो कोय। लख चौरासी फेर से, उसकी मुक्ती होय ॥
१५४१ गण गण गणात बोते बोल, जय जय गजानना। राणा हैं शेगांव के, योगी गजानना ॥ 

श्री हरिहरार्पणमस्तु ॥ शुभं भवतु ॥

( इक्कीसवाँ अध्याय समाप्त )



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