Gajanan Maharaj

Wednesday, May 27, 2020

Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-16



अध्याय सोलह


पुंडलिक भेजी पादुका


१०४८ गजानना के भक्त थे, पुंडलिक भोकरे। रहवासी मुंड़गांव के, श्री से प्रेम करे ॥
१०४९ उसी गांव भागाबाई, भी रहती थी एक। ढोंगी घूमत इधर उधर, निष्ठा कहीं न एक ॥
१०५० पुंडलिक से कहती तेरा, जनम व्यर्थ हो जाय। गुरु तूने नाही किया, मंत्र नहीं फुंकवाय ॥
१०५१ पीछे पागल पीर के, जाता तू शेगांव। भ्रष्ट आचरण वह करे, सनकी असुर सुभाव ॥
१०५२ गुरु बनाये हम दोनों, चल तू अंजन गांव। ज्ञानी चतुर गुरू वहाँ, सिखाय भक्ती भाव ॥
१०५३ कल है उनका कीर्तन, सग चलेंगे भोर। असमंजस में पुंडलिक, हाँ भर दे बरजोर
१०५४ रात तीसरे प्रहर को, श्री सपने में आयं। भागीबाई के कहे, तू रे क्यों भरमाय ॥
१०५५ गुरु बनाने जा रहा, क्या तू अंजनगांव। जा जा वहाँ पहुँचते ही, भ्रम तेरा मिट जाव ॥
१०५६ कानाफूसी जो करे, क्या वह गुरु हो जाय। अरे पुंडलिक जाल में, ढोंगी के मत आय ॥
१०५७ फिर श्री उसके कान में, गण गण गण बोले। बोल तुझे क्या चाहिये, जो चाहे ले ले ॥
१०५८ आँखें मल कर देखता, चकित गजानन दास। चरण पादुका दें मुझे, और नहीं कुछ आस ॥
१०५९ श्री जी कहें तथास्तु, पादुक करें प्रदान। उसी समय निद्रा खुली, पुंडलिका हैरान ॥
१०६० उधर उधर देखन लगा, श्रीजी नहीं दिखाय। चरणपादुका भी नहीं, उलझन में पड़ जाय ॥  
१०६१ सपने में जब पादुका, श्रीजी मुझको देय। और कहें कल दोपहरी, तू पूजा कर लेय ॥
१०६२ महाराज का शब्द तो, कभी न खाली जाय। इसका मतलब क्या समझूं, मन बुद्धि चकराय ॥
१०६३ क्या में पूजा के लिये, नई पादुका लाऊं। पर श्री जी ने तो मुझे, खुद की दई  खड़ाऊं ॥
१०६४ ऐसा सोच रहा मन में, भागीबाई आय। चलो सुबह अब हो गई, गुरू बनाने जाय ॥
१०६५ पुण्डलिक उस को मना करे, आऊं न तेरे साथ। गजानना मेरे गुरु, तजूं न उनका साथ ॥  १०६६ इधर झ्यामसिंग राजपूत, दो दिन था शेगांउ। वापस जब जाने लगा, कहते बाला भाउ ॥
१०६७ श्री ने दी यह पादुका, तुम संगे ले जाव। पुंडलिक को पहुंचाय दो, रहे आपके गांव ॥
१०६८ झ्यामसिंग की गांव में, पुंडलिक से हुइ भेंट। पूछे क्या महाराज दी, कुछ परसादी भेंट ॥
१०६९ झ्यामसिंग विस्मित उसे, अपने घर ले जाय। परसादी की बात क्यों, पूछी तूने भाय ॥
१०७० सपने वाली बात उसे, पुंडलीक बतलाय। झ्यामसिंग को तब सारी, बात समझ में आय ॥
१०७१ लाया जो शेगांव से, वह पादुका निकाल। पुंडलिक के हाथों रखी, वह हो गया निहाल ॥
१०७२ दोपहरी को भोकरे, पूजा पाद करे। मुंड़गांव में आज भी, दर्शन लोग करें ॥

Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhayay-16

बिन खाए बैठे रहे, भाऊ भाकर लाय

१०७३ सराफ राजाराम कंवर, भक्त गजानन होय। उनके दोनों पुत्र भी, श्रद्धा रखते होय ॥
१०७४ पुत्र ज्येष्ठ गोपाल था, त्र्यंबक लघु का नाम। त्र्यम्बक को भाऊ कहें, बचपन से उपनाम ॥
१०७५ सुमिरन पहले गजानना, पढ़ते उसके बाद। डाक्टर बनने के लिये, गये हैदराबाद ॥
१०७६ छुट्टी में घर आय रहे, मन में आया भाव। भोजन कराऊं सन्त को, जाकर मैं शेगांव ॥
१०७७ बचपन में ही चली गई, मां ईश्वर की गैल। भोजन कस तैयार हो, भौजाई गुस्सैल ॥
१०७८ मन में विचार चल रहे, भौजाई आ जाय। देवर से पूछन लगी, चिन्ता कारण काय ॥
१०७९ भाभी मेरी भावना, श्री को भोज करायं। कांदा भाकर झुणका, भोजन उन्हें खिलायं ॥
१०८० भौजाई मुसकाय कहे, चिन्ता की क्या बात। उठी तुरत उत्साह से, रसोई लगी बनात ॥
१०८१ मिर्च हरी, भाजी भाकर, मक्खन दिया लगाय। पुटली में बांधा भोजन, देवर से कह जाय ॥
१०८२ तुरत जाव शेगांव की, गाड़ी चली न जाय। महाराज के भोज का, समय नही टल जाय ॥
१०८३ भाऊ भोजन साथ ले, स्टेशन जा पहुंचाय। रेल मगर जाती रही, भाऊजी रह जाय ॥
१०८४ निराश भाऊ नयन से, अश्रु लगे झराय। मेरा क्या अपराध हुआ, सेवा दी ठुकराय ॥
१०८५ विव्हल भक्त पुकारता, सदगुरु तारणहार। भक्त वत्सल आन यहाँ, सेवा लें स्वीकार ॥
१०८६ घण्टे बीते तीन तो, अगली गाड़ी आय। उसमें बैठे पहुंच गया, भाऊ कवर शेगांव ॥
१०८७ मठ में दर्शन को गया, देख होय अभिभूत। भोजन किये बिना वहाँ, बैठे थे अवधूत ॥
१०८८ पकवानों से भरे हुए, निवेद अगणित थाल। छुए न उनको गजानना, भक्त सभी बेहाल ॥
१०८९ बाला भाऊ बारम्बार, श्री को विनय करे| निवेद पायें आप तो, भोजन भक्त करें ॥ 
१०९० रुक बाला कुछ देर को, तू मत आग्रह कर। आज देर होगी हमें, भोजन चौथ प्रहर ॥
१०९१ मर्जी हो तो सब रुकें, या घर वापस जायं। उस पल भाऊ आय के, चरणों में गिर जाय ॥
१०९२ श्रीजी भाऊ कवर को, देख रहे मुसकाय। सुन ली पुकार भक्त की, श्री भूखे रह जायं ॥
१०९३ भाऊ हर्षित होय कर, श्री को भोज कराय। शेष प्रसादी जो बची, भक्तों को बंट जाय ॥
१०९४ देख भक्त कौतुक करें, सभी निवेद अजोग। भाऊ की भाकर काजे, छोड़े छप्पन भोग ॥
१०९५ भाऊ को आशीष मिले, होय डाक्टरी पास। श्री की दया बनी रहे, बस इतनी ही आस ॥

तुकाराम सेवा करे,छर्रा बाहर आय

१०९६ तुकारामजी शेगोकार, श्री के सेवक होय। दिन भर खेती काम करे, संध्या दर्शन होय ॥
१०९७ चिलम भरे महराज की, चरण वन्दना होय। फिर थोड़ा सत्संग करें, यही नित्यक्रम होय ॥
१०९८ किन्तु होय प्रारब्ध जो, अनहोनी हो जाय। तुकाराम के खेत में, एक शिकारी आय ॥
१०९९ हाथ लिये बन्दूक वह, मार रहा खरगोश। तुकाराम छर्रा घुसा, गिरा होय बेहोश ॥
११०० मस्तक में छर्रा घुसा, नहीं निकल वह पाय। डाक्टर सारे थक गये, पर ना चले उपाय ॥
११०१ निश दिन मस्तक दर्द से, तुकाराम हैरान। रात-रात भर नीन्द नहीं, आफत में थी जान ॥
११०२ मन्दिर में वह एक दिन, श्री दर्शन को आय। एक भक्त ने राय दी, सेवा मे आ जाय ॥
११०३ साधु सेवा से बढ़कर, उत्तम नहीं उपाय। कृपा सन्त की होय तो, कष्ट सभी मिट जाय ॥
११०४ पर सेवा सच्ची करो, ढोंगीपन ना होय। कष्ट दूर होगा अगर, खरी भावना होय ॥
११०५ तुकाराम सेवा करे, मन्दिर झाडे रोज। बीत गये चौदह बरस, कभी न समझा बोझ ॥
११०६ एक दिवस ऐसा हुआ, गुरु कृपा हो जाय। तुकाराम के कान से, छर्रा बाहर आय ॥
११०७ छर्रा बाहर आय तो, दर्द हो गया बन्द। सेवा का मेवा मिला, तुकाराम आनन्द ॥
११०८ गण गण गणात बोते बोल, जय जय गजानना। राणा हैं शेगांव के, योगी गजानना ॥

श्री हरिहरार्पणमस्तु ॥ शुभं भवतु ॥

 (सोलहवाँ अध्याय समाप्त )



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