अध्याय सत्रह
दण्ड भास्कर पाय
११०९ शहर अकोला महाराज के, भक्त कई थे जेठ। एक बार श्री आय रुके, मिल में खटाउ सेठ ॥ 
१११० समाधि ली अड़गांव जो, भास्कर पाटिल साथ। वही व्यवस्था देखता, सब कुछ उसके हाथ ॥ 
११११ एक भक्त मलकापुर का, नाम विष्णुसा होय। गांव गजानन ले चलूं, इच्छा रखता होय ॥ 
१११२ टिप्पस भिड़ाय भास्कर, चक्कर दिया चलाय। श्री जी मलकापुर चलो, रट पाटील लगाय ॥ 
१११३ श्री जी पाटिल से कहें, तू मत पीछे लाग। इस झंझट से दूर रह, खींचे टूटत ताग ॥ 
१११४ भास्कर तो माने नहीं, रखियो मेरी बात। विष्णूसा को शब्द दिया, लाज आपके हाथ ॥ 
१११५ महाराज को भास्कर, स्टेशन रहा लिवाय। इक डिब्बा श्री के लिये, खाली लिया कराय ॥ 
१११६ बैठ गये चुचाप श्री, खाली डिब्बे माय। रेल चली लीला करें, खिसक वहाँ से जाय॥ 
१११७ खिसक वहाँ से जाय वे, दिगम्बरा श्री साय| महिला डिब्बा पास था, नजर बचा घुस जाय ॥ 
१११८ मूर्ति दिगम्बर देखकर, महिलाएँ घबराय। पुलिस सूचना भेज दी, अधिकारी आ जाय ॥ 
१११९ हाथ पकड़ गाली देवे, दुतकारन लग जाय। पर अधिकारी साधु से, नहीं निपटने पाय ॥ 
११२० आये स्टेशन मास्टर, देखें योगीराज। जाने दें रोकें नहीं, गजानन महाराज ॥ 
११२१ ये तो सन्त महान है, ईश्वर के अवतार। साधू साधारण नहीं, ना ये गुनाहगार ॥ 
११२२ अधिकारी कहने लगा, ऊपर भेजी तार। प्रकरण में बचता नहीं, अब मेरा अधिकार ॥ 
११२३ इत्तला दे दी आपको, यहाँ प्रभारी आप। जो चाहे वैसा करें, जबाब देवें आप ॥ 
११२४ श्री से सादर विनय करें, स्टेशन मास्टरजी। नियम दिलाया याद तो, योगीराज राजी ॥ 
११२५ आगे फिर प्रकरण चला, हाकिम होय जठार। सुनवाई शेगाँव में, तारिख लगी पुकार ॥ 
११२६ डाक बंगले काम से, आये श्री देसाय। बाहर देखें भीड़ पड़ी, कारण समझ न आय ॥ 
११२७ पूछन लगे जठार से, प्रकरण क्या है खास। लोगों की है भीड़ क्यों, डाक बंगले पास ॥ 
११२८ जठार साहब ने कहा, पुलिस करी फ़रियाद। नंगे घूमें गजानना, सुनवाई है बाद ॥ 
११२९ देसाई जी खिन्न हुए, जठार से कर जोड। करें विनय भगवन्त पर, मुकद्दमा दें छोड़ ॥ 
११३० भारी भूल पुलिस करी, उसे सुधारें आप। मुक़द्दमा ख़ारिज करें, जीवन मुक्त खिलाफ ॥ 
११३१ आप कायदा जानते, पोलिस का अधिकार। मैं तो सुनवाई करूं, कहने लगे जठार ॥ 
११३२ धर लाने श्री गजानना, एक सिपाही जाय। 
सीधे चले चलो नहीं, हाथ पकड़ ले जायं ॥ 
११३३ गजानना कहने लगे, हम तो कहीं न जायं। धर ले कर हम देख लें, कैसा पुलिस सिपाय ॥ 
११३४ श्री जी ने फिर पकड़ लिया, उस जवान का हाथ। हाथ दबे से रक्त रुका, नील हो गया हाथ ॥ 
११३५ जाना जठार जज्ज जब, जवान का सब हाल। देसाई को भेजते, बात लेय सम्भाल ॥ 
११३६ देसाई की राय को, भक्तों ने ली मान। 
धोती पहनाई चले, कोरट को श्रीमान ॥ 
११३७ बीच रास्ते छोड़ दी, धोती योगीराज। 
संग भास्कर जा पहुँचे, जहाँ कचहरी काज ॥ 
११३८ जठार ने आसन दिया, बैठे सन्त प्रवर। आप दिगम्बर घूमते, ना कानून से डर ॥ 
११३९ हम आपसे विनय करें, तजें दिगम्बर रूप। नियमों का आदर करे, साधू वही अनूप ॥ 
११४० जठार का भाषण सुना, सुन के श्री मुसकाय। छोड़ बात बेकार की, ला तू चिलम पिलाय ॥ 
११४१ जठार पानी हो गये, सुन के श्री के बोल। ये तो निज आनन्दरत, नहीं नियम का मोल ॥ 
११४२ लोकरीति जाने नहीं, नहीं जगत व्यवहार। वृषभ देव शुकचार्य या, वामदेव अवतार ॥ 
११४३ अगन सुभाव दहन करे, रखो कुण्ड के माय। खुली अगन छोड़ी अगर, सभी भस्म हो जाय ॥ 
११४४ नगन सन्त यह नगनपना, कभी नहीं तज पाय। शिष्यों का ही काम यह, इन्हें वसन पहिनाय ॥ 
११४५ इन्हें वसन पहिनाय यह, काम भास्करा होय। पाटिल की त्रुटि की सजा, पाँच रुपय्या होय ॥ 
११४६ मूकद्दमा यूँ बंद हुआ, बन्द हो गई रेल। बहुत समय श्री का रहा, वाहन गाड़ी बैल ॥ 
हिन्दू मुस्लिम एकता में सबका कल्याण
११४७ कुरुमगांव महताबशा, यवन सन्त का वास। गजानना दर्शन करूं, मन में थी यह आस ॥ 
११४८ बापुराव के घर रुके, महाराज इक बार। फकीर को भिजवा दिया, दूत से समाचार ॥ 
११४९ राह फकीरा मिल गये, कहे कुरु मत जाय। मैं ही हूँ महताब शा, चलो अकोला जायं ॥ 
११५० श्री के आने की खबर, बिना दूत पा जाय। इसीलिये महताब शा, तिरकाली कहलाय ॥ 
११५१ श्री जी मिले फकीर से, निज लीला दिखलाय। पकड़े केश फकीर के, उसको पीटत जाय ॥ 
११५२ नाम तेरा महताबशा, दूर करे अंधकार। द्वेष भाव जग में बढ़ा, इसका नहीं विचार ॥ 
११५३ महाराज की बात को, समझ गये महताब। सन्त पढ़ सके सन्त के, अन्तर लिखी किताब ॥ 
११५४ बच्चूलाल अगरवाला, श्री के दर्शन आय। घर पर भोजन के लिये, जुलूस में ले जाय ॥ 
११५५ श्री तांगे उतरे नहीं, वापस लें पलटाय। कारण समझे ना कोई, चिन्ता में पड़ जायं ॥ 
११५६ कारण जब खोजन लगे, आया याद फकीर। उसे बुलावा नहीं दिया, महाराज को पीर ॥ 
११५७ दुई सन्त को ले गये, भोजन साथ कराय। सभी लोग आनन्द से, परसादी पा जाय ॥ 
११५८ सन्त द्वैत माने नहीं, सभी धर्म सम मान। मन्दिर मसजिद एक ही, सब ईश्वर के जान ॥ ११५९ हिन्दू मुसलिम एकता, में सब का कल्याण। सर्व धर्म सम भाव हो, सुख का यही प्रमाण ॥ 
११६० सन्त गजानन करत रहे, लीलाएँ न्यारी। वर्णन सब करना कठिन, लेखक पर भारी ॥ 
११६१ बापूराव की भार्या, को बाधा हो जाय। उपाय बहुतेरे किये, पर मुक्ती ना पाय ॥ 
११६२ जानकार जंतर मन्तर, सफल नहीं 
हो पाय। आखिर जोड़े हाथ वह, श्री से विनय कराय ॥ 
११६३ हवा ऊपरी लग गई, भानामति का त्रास। आप यहाँ मौजूद फिर, क्यों भूतन का वास ॥ 
११६४ श्री जी ने केवल किया, उस पर दॄष्टिपात। बाधा दूर हुई तुरत, बापू खुशी मनात ॥ 
कुएं बीच से फव्वारे, जल के छूटत होय
११६५ नरसिंग मठ में एक कुंआ, जा बैठे महराज। पांव किये कूएँ अन्दर, झांके योगीराज ॥ 
११६६ नरसिंग स्वामी पूछते, क्या करते श्रीमान। गोदा जमना भगीरथी, कराय मुझको स्नान ॥ 
११६७ नहान जब तक होय ना, हिलूँ यहाँ से नाय। लोग इकट्ठा हो गये, साधू करता काय ॥ 
११६८ क्षण भर में सबने देखा, एक अचम्भा होय। कुए बीच से फव्वारे, जल के छूटत होय ॥ 
११६९ कूप माय जो जल भरा, ऊपर तक आ जाय। जल फुहार बरसन लगी, योगीराज नहाय ॥ 
११७० गण गण गणात बोते बोल, जय जय गजानना। राणा हैं शेगांव के, योगी गजानना ॥
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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