Gajanan Maharaj

Wednesday, May 27, 2020

Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-17


अध्याय सत्रह


दण्ड भास्कर पाय

११०९ शहर अकोला महाराज के, भक्त कई थे जेठ। एक बार श्री आय रुके, मिल में खटाउ सेठ
१११० समाधि ली अड़गांव जो, भास्कर पाटिल साथ। वही व्यवस्था देखता, सब कुछ उसके हाथ
११११ एक भक्त मलकापुर का, नाम विष्णुसा होय। गांव गजानन ले चलूं, इच्छा रखता होय
१११२ टिप्पस भिड़ाय भास्कर, चक्कर दिया चलाय। श्री जी मलकापुर चलो, रट पाटील लगाय
१११३ श्री जी पाटिल से कहें, तू मत पीछे लाग। इस झंझट से दूर रह, खींचे टूटत ताग
१११४ भास्कर तो माने नहीं, रखियो मेरी बात। विष्णूसा को शब्द दिया, लाज आपके हाथ
१११५ महाराज को भास्कर, स्टेशन रहा लिवाय। इक डिब्बा श्री के लिये, खाली लिया कराय
१११६ बैठ गये चुचाप श्री, खाली डिब्बे माय। रेल चली लीला करें, खिसक वहाँ से जाय॥
१११७ खिसक वहाँ से जाय वे, दिगम्बरा श्री साय| महिला डिब्बा पास था, नजर बचा घुस जाय
१११८ मूर्ति दिगम्बर देखकर, महिलाएँ घबराय। पुलिस सूचना भेज दी, अधिकारी जाय
१११९ हाथ पकड़ गाली देवे, दुतकारन लग जाय। पर अधिकारी साधु से, नहीं निपटने पाय
११२० आये स्टेशन मास्टर, देखें योगीराज। जाने दें रोकें नहीं, गजानन महाराज
११२१ ये तो सन्त महान है, ईश्वर के अवतार। साधू साधारण नहीं, ना ये गुनाहगार
११२२ अधिकारी कहने लगा, ऊपर भेजी तार। प्रकरण में बचता नहीं, अब मेरा अधिकार
११२३ इत्तला दे दी आपको, यहाँ प्रभारी आप। जो चाहे वैसा करें, जबाब देवें आप
११२४ श्री से सादर विनय करें, स्टेशन मास्टरजी। नियम दिलाया याद तो, योगीराज राजी
११२५ आगे फिर प्रकरण चला, हाकिम होय जठार। सुनवाई शेगाँव में, तारिख लगी पुकार
११२६ डाक बंगले काम से, आये श्री देसाय। बाहर देखें भीड़ पड़ी, कारण समझ आय
११२७ पूछन लगे जठार से, प्रकरण क्या है खास। लोगों की है भीड़ क्यों, डाक बंगले पास
११२८ जठार साहब ने कहा, पुलिस करी फ़रियाद। नंगे घूमें गजानना, सुनवाई है बाद
११२९ देसाई जी खिन्न हुए, जठार से कर जोड। करें विनय भगवन्त पर, मुकद्दमा दें छोड़
११३० भारी भूल पुलिस करी, उसे सुधारें आप। मुक़द्दमा ख़ारिज करें, जीवन मुक्त खिलाफ
११३१ आप कायदा जानते, पोलिस का अधिकार। मैं तो सुनवाई करूं, कहने लगे जठार
११३२ धर लाने श्री गजानना, एक सिपाही जाय।  सीधे चले चलो नहीं, हाथ पकड़ ले जायं
११३३ गजानना कहने लगे, हम तो कहीं जायं। धर ले कर हम देख लें, कैसा पुलिस सिपाय
११३४ श्री जी ने फिर पकड़ लिया, उस जवान का हाथ। हाथ दबे से रक्त रुका, नील हो गया हाथ
११३५ जाना जठार जज्ज जब, जवान का सब हाल। देसाई को भेजते, बात लेय सम्भाल
११३६ देसाई की राय को, भक्तों ने ली मान।  धोती पहनाई चले, कोरट को श्रीमान
११३७ बीच रास्ते छोड़ दी, धोती योगीराज।  संग भास्कर जा पहुँचे, जहाँ कचहरी काज
११३८ जठार ने आसन दिया, बैठे सन्त प्रवर। आप दिगम्बर घूमते, ना कानून से डर
११३९ हम आपसे विनय करें, तजें दिगम्बर रूप। नियमों का आदर करे, साधू वही अनूप
११४० जठार का भाषण सुना, सुन के श्री मुसकाय। छोड़ बात बेकार की, ला तू चिलम पिलाय
११४१ जठार पानी हो गये, सुन के श्री के बोल। ये तो निज आनन्दरत, नहीं नियम का मोल
११४२ लोकरीति जाने नहीं, नहीं जगत व्यवहार। वृषभ देव शुकचार्य या, वामदेव अवतार
११४३ अगन सुभाव दहन करे, रखो कुण्ड के माय। खुली अगन छोड़ी अगर, सभी भस्म हो जाय
११४४ नगन सन्त यह नगनपना, कभी नहीं तज पाय। शिष्यों का ही काम यह, इन्हें वसन पहिनाय
११४५ इन्हें वसन पहिनाय यह, काम भास्करा होय। पाटिल की त्रुटि की सजा, पाँच रुपय्या होय
११४६ मूकद्दमा यूँ बंद हुआ, बन्द हो गई रेल। बहुत समय श्री का रहा, वाहन गाड़ी बैल
 
Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-17
Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-17

हिन्दू मुस्लिम एकता में सबका कल्याण

११४७ कुरुमगांव महताबशा, यवन सन्त का वास। गजानना दर्शन करूं, मन में थी यह आस
११४८ बापुराव के घर रुके, महाराज इक बार। फकीर को भिजवा दिया, दूत से समाचार
११४९ राह फकीरा मिल गये, कहे कुरु मत जाय। मैं ही हूँ महताब शा, चलो अकोला जायं  
११५० श्री के आने की खबर, बिना दूत पा जाय। इसीलिये महताब शा, तिरकाली कहलाय
११५१ श्री जी मिले फकीर से, निज लीला दिखलाय। पकड़े केश फकीर के, उसको पीटत जाय
११५२ नाम तेरा महताबशा, दूर करे अंधकार। द्वेष भाव जग में बढ़ा, इसका नहीं विचार
११५३ महाराज की बात को, समझ गये महताब। सन्त पढ़ सके सन्त के, अन्तर लिखी किताब
११५४ बच्चूलाल अगरवाला, श्री के दर्शन आय। घर पर भोजन के लिये, जुलू में ले जाय
११५५ श्री तांगे उतरे नहीं, वापस लें पलटाय। कारण समझे ना कोई, चिन्ता में पड़ जायं
११५६ कारण जब खोजन लगे, आया याद फकीर। उसे बुलावा नहीं दिया, महाराज को पीर
११५७ दुई सन्त को ले गये, भोजन साथ कराय। सभी लोग आनन्द से, परसादी पा जाय
११५८ सन्त द्वैत माने नहीं, सभी धर्म सम मान। मन्दिर मसजिद एक ही, सब ईश्वर के जान ११५९ हिन्दू मुसलिम एकता, में सब का कल्याण। सर्व धर्म सम भाव हो, सुख का यही प्रमाण
११६० सन्त गजानन करत रहे, लीलाएँ न्यारी। वर्णन सब करना कठिन, लेखक पर भारी
११६१ बापूराव की भार्या, को बाधा हो जाय। उपाय बहुतेरे किये, पर मुक्ती ना पाय
११६२ जानकार जंतर मन्तर, सफल नहीं  हो पाय। आखिर जोड़े हाथ वह, श्री से विनय कराय
११६३ हवा ऊपरी लग गई, भानामति का त्रास। आप यहाँ मौजूद फिर, क्यों भूतन का वास
११६४ श्री जी ने केवल किया, उस पर दॄष्टिपात। बाधा दूर हुई तुरत, बापू खुशी मनात

कुएं बीच से फव्वारे, जल के छूटत होय

११६५ नरसिंग मठ में एक कुंआ, जा बैठे महराज। पांव किये कूएँ अन्दर, झांके योगीराज
११६६ नरसिंग स्वामी पूछते, क्या करते श्रीमान। गोदा जमना भगीरथी, कराय मुझको स्नान
११६७ नहान जब तक होय ना, हिलूँ यहाँ से नाय। लोग इकट्ठा हो गये, साधू करता काय
११६८ क्षण भर में सबने देखा, एक अचम्भा होय। कुए बीच से फव्वारे, जल के छूटत होय
११६९ कूप माय जो जल भरा, ऊपर तक जाय। जल फुहार बरसन लगी, योगीराज नहाय
११७० गण गण गणात बोते बोल, जय जय गजानना। राणा हैं शेगांव के, योगी गजानना

श्री हरिहरार्पणमस्तु शुभं भवतु

 (सत्रहवाँ अध्याय समाप्त )



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