Gajanan Maharaj

Wednesday, May 27, 2020

Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-10

अध्याय दस


सन्त गरीबों की सदा पूरी करते आस

               
६५६ एक बार महराजजीपहुंचे अमरावती। भगत आतमाराम करेंश्रीजी की भगती 
६५७ स्वागत श्रीजी का करेंमंगल स्नान करायं।आनन्दित अति होय करउबटन लेप लगाय ६५८ पहनाई धोती नईगल फुलोंका हार। तिलक माथा चन्दन लगादिपारती उतार 
६५९ सौ रुपए दक्षणा दियेनैवद भोग चढ़ाय | दर्शन को महाराज केभीड़ बहुत पड़ जाय 
६६० हर कोई यह चाहताश्री उसके घर आयं। सन्त चरण निज घर पडेजनम सुफल हो जाय 
६६१ सबके के ऐसे भाग कहां,,कुछ ही थे पुनवान। खापर्डे एक वकील के,भाग्य बड़े बलवान 
६६२ उनके घर श्रीजी गये, स्वागत पूजन होय। वकील सरल सुभाव केधन की कमी ना होय 
६६३ गणेश अप्पा वणिक कीभार्या चन्द्रा बाय। सोचे सन्त बुलाय करउनके पाद पुजाय 
६६४ अप्पा समझाये उसेबनो  तुम नादान। ग़रीब के घर क्यों भलाआये सन्त महान ।॥
६६५ चन्द्रा जिद करने लगीमन मेरे विश्वास। सन्त ग़रीबों की सदापूरी करते आस 
६६६ पर अप्पाजी चुप रहेछाती धुक-धुक होय। श्री को आमंत्रित करूंहिम्मत ही ना होय 
६६७ अन्तर्यामी गजाननाजाने मन की चाह। हाथ पकड़ कहने लगे,बतला घर की राह 
६६८ मेरी इछा हो रही,तेरे घर मैं आऊं। बैठूं थोड़ी देर वहांकुछ बातें बतियाउं 
६६९ अप्पा हर्षित होय करश्री को घर ले जाय। पति -पत्नी पूजा करेंअर्पण सब कर जाय 
६७० प्रतिदिन पूजाएं चलीअमरावती निहाल। लौट गये शेगावं कोअब आगे का हाल 

महाराज जी स्थान बदल मोटे मन्दिर आय

६७१ 'मोटे मन्दिर' स्थान जोबैठक वहां जमाय। छोड़ा 'पाटिल बाग' क्योंकृष्णाजी घबराय 
६७२ श्री चरणों में बैठ करनैनन जल बरसाय। महाराज पूछन लगेक्यों रोवत कृष्णाय 
६७३ हाथ जोड़ पाटिल कहें ,वापस चलिये नाथ। भूल अगर कोई हुईमाफ करें श्रीनाथ  
६७४ देशमुखोंका स्थान यहयहां  रहिये आप। बाग नहीं मर्जी अगरबाड़े रहिये आप 
६७५ बिनती पाटिल की सुनीश्री उनको समझाय | मैं जो  बैठा यहांपाटिल कुटुम्ब हिताय 
६७६ जानोगे तुम भविष्य मेंचुप कर भी कुछ देर। देशमूख पाटिल कादूर करूंगा बैर 
६७७ तुमपर कृपा हमार हैउसमें कमी  आय। छोड़ा हमने बाग़ तोक्लेश करो तुम काय 
६७८ जिस भू बैठ गजाननासखाराम की होय। उसी जगह भक्तों द्वारामठ की रचना होय 
६७९ मठ रचना के काम मेंसभी भक्त जुट जाय। परशराम और सावजीबहुत काम कर जाय  
६८० अप्पा भास्कर पिताम्बरारामचन्द्र बाला | पंचरत्न सम भक्त रहेश्री जी की माला 
६८१ बाला भाऊ ने भक्तीउच्च कोटी की कीन छोड़ नौकरी और घरश्री सेवा में लीन 
६८२ भास्कर बाला की सदाहोती थी तकरार। बाला की महराजसेकरते रहते रार 
६८३ महाराज पीटें उसेछतरी से दे मार। फिर भी वह आनन्द मेंलीला अपरम्पार 

Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-10
Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-10

गोमाता सुकलाल की बन्धन मुक्त कराय

६८४ अब सुनिये सुकलाल की, दुष्ट एक थी गाय। देखन को तो गाय थी, बाघिन रहा सुभाय
६८५ सींग मार चाहे जिसे, घूमत फिरे बजार। जिस दुकान भीतर घुसे, उसका बन्टा ढार
६८६ बालापुर के लोग भी, त्रस्त हुए उस गाय। दे दो इसे कसाय को, ऐसी देवें राय
६८७ इक पठान बन्दूक ले, गोली मारन आय। उस पठान को गाय ने, सींगों से उधडाय
६८८ जा छोड़ा परगाव तो, वापस फिर जाय। परेशान सुकलाल को, सूझे नहीं उपाय
६८९ लोगों ने की मंत्रणा, आया एक विचार। ले जाओ शेगांव इसे, गजानना दरबार
६९० अश्व बुवा गोविन्द का, जैसे किया गरीब। अर्पण गाय करो उन्हें, वे जाने तरकीब
६९१ साधू को गौदान का, पुण्य मिले सुकलाल। बालापुर संकट टले, शान्ती होय बहाल  
६९२ लोहे की जंजीर से, मुश्किल बांधी जाय। गाय चढ़ी गाड़ी चली, बालापुर से जाय
६९३ आया जब शेगांव निकट, गौ का बदला भाव। गजानना सम्मुख खड़ी, लोचन नीर बहाव
६९४ महाराज देखें उसे, बन्धे चारों पायं।  सींग गले जंजीर पड़ी, रोती जग की माय
६९५ अरे अरे ये क्या किया, क्यों बांधी गौ माय। श्री जी आगे आय के, बंधन तोड़े गाय
६९६ बन्ध खुले तो गौमाता, गाड़ी उतरी आय। श्री को वन्दन कर रही, आगे पाँव बढ़ाय
६९७ गर्दन नीचे डालकर, प्रदक्षिणा कर तीन। दिव्य चरण चाटन लगी, देखें सब तल्लीन
६९८ जय जय गजानना करें, भक्त सभी उद्घोष। मठ में तब से हो रहा, गौमाता का पोष

भक्ति होय दिखावटी ना गजानना भाय

६९९ लक्ष्मण रहता कारंजा, धन से बड़ा अमीर। दुखी पेट के रोग से, औषध हरे पीर
७०० कीरत सुनी गजानना, आया वह शेगांव। लोग उठाकर लाय उसे, चले पैदल पांव॥
७०१ नमन करे महाराज को, मुख से बोलन पाय। उसकी पत्नी सामने, आंचल दे फैलाय  
७०२ महाराज हे दया निधि, मुझ पर कृपा करो। धरमपुत्रि मैं आप की, इनकी पीड हरो
७०३ महाराज जी उस घड़ी, बैठ खा रहे आम। एक आम फेंका कहा, खिला उसे यह आम
७०४ सदा सुहागन तू रहे, हो तेरा पति स्वस्थ। इतना कह चुप हो गये, चिलम चढ़ाये मस्त
७०५ रोगी को घर लौटकर, आम प्रसाद खिलाय। कृपा हुई शेगांव जो, स्त्री सब को बतलाय
७०६ सुनकर बोले बैद जी, सर्व नाश हे राम। आमाशय के रोग में, कुपथ्य है जी आम
७०७ बात सुनी जब बैद की, घर के सब घबराय। लक्ष्मण स्त्री ताने सुने, आशंकित हो जाय
७०८ पर अचरज की बात यह, लक्ष्मण चंगा होय। वैद्य शास्त्र झूठे पड़े, सन्त वचन सत होय
७०९ नीरोगी लक्ष्मण आया, दर्शन श्री महराज। कारंजा में घर मेरा, चरण पड़ें महराज
७१० बिनती उसकी मानकर, श्री कारंजा जायं। लक्ष्मण सुस्वागत करे, पाद पुजाय धुलाय
७११ फिर कहता वो सन्त से, सर्वस मालिक आप। फिर भी कुछ पैसे रखे, स्वीकारें यदि आप
७१२ श्री जी ने निरखा उसे, फिर बोले ऐसा। तूने सब कुछ दे दिया, फिर कैसा पैसा
७१३ लक्ष्मण तू अब छोड़ दे, गर्व भरी चालें। तूने घर मुझको दिया, फेंक सभी ताले   
७१४ लक्ष्मण तब घबराय के, खोल खजीना द्वार। जो चाहे ले जाय कहे, मन में और विचार
७१५ बहुरुपिया डोलत फिरे, राजा बन बाजार। पर असली पहचान तो, जाने सब संसार
७१६ लक्ष्मण दम्भी जान गये, इसी तरह महराज। घर उसका छोड़े तुरत, वे सागर बैराग
७१७ जाते-जाते कह गये , नहीं असत्य कबूल। 'मेरा' 'मेरा ' समझता, भोगेगा यह भूल
७१८ मैं तो था आया यहाँ, मिले दोगुना तोय। पर तेरा प्रारब्ध नहीं, कुछ उपाय ना होय
७१९ श्री गजानना जस कहें, वही सत्य हो जाय। लक्ष्मण की धन सम्पदा, सभी नष्ट हो जाय
७२० छः महिने गुजरे होंगे, मांगन लागा भीख। झूठ से परमार्थ चले, इससे लो यह सीख
७२१ गण गण गणात बोते बोल, जय जय गजानना। राणा हैं शेगांव के, योगी गजानना  

श्री हरिहरार्पणमस्तु शुभं भवतु

(दसवाँ अध्याय समाप्त )



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