Gajanan Maharaj

Wednesday, May 27, 2020

Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-19


अध्याय उन्नीस


काशीनाथ की पीठ पर कुहनी की दें मार

१२४६ गजानन महाराज की, लीला कई हजार। उनको दोहों में लिखूं, काम कठिन दुश्वार
१२४७ दरश पहली बार करे, गर्दे काशीनाथ। कुहनी मारी पीठ पर, और कहें श्रीनाथ
१२४८ तेरे मन की हो गई, आया है इक तार। गर्दे गड़बड़ में पड़ा, लौटा अपने द्वार
१२४९ लौटा अपने द्वार तो, तार एक मिल जाय। मुंसिफी ओहदा मिला, तार यही बतलाय
१२५० अब कुहनी की मार का, अर्थ समझ जाय। काशिनाथ आनन्द से, गजानना गुण गाय

नागपुर का धनपति छोड़े ना श्री सन्त

१२५१ सीताबर्डी नागपुर, बूटी बंगला होय। एक बार श्री गजानन, वहां पधारे होय
१२५२ बंगले में साधु रहे, बूटी रखता होय। शानदार से महल में, कैद बाघ इक होय
१२५३ बूटी मन में सोचता, यहीं रहें महराज। नहीं जायं शेगांव अब, वहां भला क्या काज
१२५४ सूनसान वीरान था, श्री के बिन शेगांव। भक्त कहें हरि पाटला, श्री को वापस लाव  
१२५५ बूटी के घर में इधर, श्री जी ना खुशहाल। किशन हस्तिनापुर रहे, कुछ वैसा था हाल
१२५६ बूटी से महराज कहें, जाने दे शेगांव। महलों में रहना नहीं, साधू सन्त सुभाव
१२५७ पर बूटी माने नहीं, महाराज की बात। धन बल के आगे हुई, गुरु भक्ति की मात
१२५८ हरि पाटिल शेगांव से, कुछ भक्तों के साथ। नागपूर को चल पड़ा, लाय गजानन नाथ
१२५९ नाथ गजानन ने कहा, बूटी को समझाय। पाटिल आते ही यहां, हंगामा हो जाय
१२६० तू पैसे के जोर पर, मुझको रोके जाय। वह ताकत के जोर पर, मुझको लेके जाय
१२६१ बूटी कोठी गया, हरि पाटिल जमिदार। गौ लख बछड़ा दौड़ता, तस श्री दौड़े द्वार
१२६२ चल हरि अब शेगांव को, यहाँ रहना मोय। तू जो लेने गया, बात भली यह होय
१२६३ महाराज जाने लगे, बूटी चरण पड़ जाय। बिन भोजन जाए नहीं, ऐसी विनय कराय
१२६४ विनय सुनी महराज ने, भोजन को रुक जायं। हरि पाटिल की मंडली, संग प्रसादी पाय
१२६५ श्री जब भोजन पाय के, बूटी बंगला छोड़। दर्शन पाने के लिये, भक्तों में थी होड़
१२६६ बूटी पत्नी जानका, मांगे आशिर्वाद। पुत्र प्राप्ति का दे दिया, श्री ने आशीर्वाद
१२६७ सीताबर्डी से चले, राजा रघुजी ठाव। पाय वहां सत्कार फिर, रामटेक शेगांव टेम्बे स्वामी

 आय रहे, दर्शन श्री महाराज


१२६८ सन उन्नीस सौ पांच में, एक दिवस की बात। श्री जी बाला से कहें, कल आएगा भ्रात
१२६९ वासुदेव टेम्बे स्वामी, ज्ञानी सन्त महान। मठ की साफ सफाई में, त्रुटि ना होवे जान
१२७० चिन्दी भी देखी कहीं, तो होगा नाराज।  टेम्बे स्वामी दूसरे, जमदग्नी महराज
१२७१ वासुदेव जी सरस्वती, पहुँचे मठ माय। महाराज की चुटकियां, देख उन्हें थम जाय
१२७२ एक समन्दर कर्म का, दूजा योगेश्वर। एक मोगरा दूसरा, गुलाब का तरुवर
१२७३ दोनों की नजरें मिली, मन में हर्ष समाय। इक दूजे को देख कर, दोनों ही मुसकाय
१२७४ मिलन बाद अज्ञा मंगे, श्री जी शीश हिलाय। टेम्बे स्वामी लौटकर, राह आपनी जाय
१२७५ सन्त मिलन को देखकर, विस्मय बाला होय। मन में जिज्ञासा जगी, श्री से पूछत सोय
१२७६ टेम्बे स्वामी रंगनाथजी, मार्ग दूसरा पाय। भ्राता इनको आप कहें, बात समझ ना आय
१२७७ महाराजजी शिष्य का, समाधान कर जाय। कर्म भक्ति वा योग यह, तीन मार्ग बतलाय
१२७८ राह अलग तीनों मगर, ईश्वर से मिलवाय। इनको देखे जो अलग, भ्रम में वह पड़ जाय
१२७९ महाराज ने शिष्य को, दिया रहस्य बताय। कर्म भक्ति वा योग को, वर्णन कर समझाय
१२८० सदगुरु का उपदेश सुन, बाला विव्हल होय। प्रेमाश्रु बहने लगे, रोमांचित तन होय
१२८१ मुहँ से बोल फूटते, मूक नमन गुरु आज। श्री गजानना अवतरे, जन कल्याणी काज
 
Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-19
Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay - 19

तन मन धन अर्पण

१२८२ दास गणू उत्ल्लेख करें, तीन भक्त के नाम। जामकर केदार और, जोशी आत्माराम
१२८३ तन मन धन अर्पण किये, श्रीसदगुरु के काम। एकनिष्ठ वे शिष्य थे, मिला मान अरु नाम
१२८४ जलम्ब नामक गांव में, जोशी आत्माराम। वेदों का अभ्यास करे,विवेक से हर काम
१२८५ काशी विद्या पायकर, लौटा आत्माराम।  श्री चरणों में हाजरी, देना पहला काम
१२८६ वेदों का वह पाठ करे, कहीं भूल हो जाय। श्री जी भूल सुधारते, आतम खुश हो जाय
१२८७ मठ में रह करने लगा, पूजन अर्चन काम|श्री चरणों अर्पण करे, सम्पति आतमराम


मारुती पटवारी के गधे घुस गये खेत

१२८८ महाराज के भक्त थे, मारुती पटवारी। मोरगांव में खेत थे, तिमाजी रखवारी
१२८९ रात तिमाजी सो गया, गधे घुस गये खेत। महाराज लीला करें, उसको जगाय देत
१२९० जाग तिमाजी देखता, खले पड़ी हो जो ज्वार आधी गर्दभ खा गये, मन में हाहाकार॥ 
१२९१ सुबह हुई तो जा पहुंचा, मारूती के द्वार। बात रात की दी बता, तीमा इमानदार
१२९२ आज अभी मैं जा रहा, दर्शन श्री महाराज। लौटा तो फिर देख लूं, खेत गिरी क्या गाज
१२९३ ऐसा कह के चल दिये, मारूती पटवारी। मठ पहुंचे श्री की छबी, दिखे वहाँ न्यारी
१२९४ जगु आबा के सामने, श्री बोले मुख हास। तेरे कारण रात को, हमें हो गया त्रास
१२९५ रक्षक सोये खेत में, तू घर में सो जात। जुवार तेरी खाय गधे, तो मैं दौड़ूं रात
१२९६ रात तिमाजी सो गया, गधे घुसे खलिहान। मैं जाकर उसको उठा, बचा दिया नुकसान
१२९७ मारुति जोड़े हाथ कहे, रक्षक आप हमार। माता पर ही सदा रहे, सब बच्चों का भार
१२९८ जो कुछ मेरे नाम से, सब के मालिक आप। जुवार खेत खले सभी, आप ही माई बाप
१२९९ भूल तिमाजी से हुई, कष्ट उठायें आप। नौकरि से बाहर करूं, क्षमा करें प्रभु आप
१३०० नहीं नहीं नौकर तेरा, तीमा इमानदर। अपनी भूल बताय दी, आकर तेरे द्वार  
१३०१ नतमस्तक मारुति हुआ, सुनकर श्री आदेश। सच्चे का आदर करो, यह श्री का सन्देश

बिना बात मारे सन्ता,बात नहीं यह ठीक

१३०२ इक छोटी घटना घटी, दास गणु लिख जायं। एक बार श्री गजानना, बालापुर जायं
१३०३ घर बाहर सुकलाल के, निजानन्द में लीन। नग्न अवस्था में बैठे, महाराज तल्लीन
१३०४ आते जाते लोग सब, प्रणाम कर कर जायं। हवलदार नारायण भी, उसी राह जे जाय
१३०५ देख दिगम्बर गजानना, नारायण भड़काय। आकर श्री के पास वह, उल जलूल बक जाय
१३०६ नंगा बीच बजार में, लाज तुझे ना आय। भुगत अभी अपना किया, ले ढोंगी साय
१३०७ ऐसा कह बरसान लगा, डंडे संत शरीर। तन सारा नीला पड़ा, श्रीजी चुप गंभीर
१३०८ देख पिटाई सन्त की, इक यशवन्ता आय। हवलदार को रोक कर, यूँ कहने लग जाय
१३०९ बिना बात मारे सन्ता, बात नहीं यह ठीक। हवलदार जो तू किया, मांग क्षमा की भीख
१३१० क्षमा याचना क्यों करूं, साधू है यह नीच। वाहियात बक बक करे, नग्न गांव के बीच
१३११ सन्त घात के कर्म का, फल उसको मिल जाय। हवलदार नारायण का, स्वर्गवास हो जाय

सुख का जीवन मिल गया

१३१२ संगमनेरी बामना, हरी जाखडा नाम। मन्नत मंगे गजानना, विवाह का हो काम
१३१३ थूकत उसके शरीर पर, फिर ऐसा कह जाय। मूरख मुझसे माँग रहा, माया फन्दा पाय
१३१४ कैसी उलटी रीत यह, मांगे घर संसार। मुक्ति पाय भगवन मिले, ऐसा नहीं विचार
१३१५ पर बामन जो चाहना, तेरे मन में आय। होगी पूरी मन्नतें, जा अब तू घर जाय
१३१६ विवाह काजे धन दिया, श्री जी का परसाद। सुख का जीवन मिल गया, हरी हुआ आबाद

निमोणकर इंजीनियर भक्ति में लग जाय

१३१७ निमोणकर ओवरसियर, सीखन चाहे योग। गुरु कोई ढूंढत फिरे, कब होगा संयोग
१३१८ स्नान के लिये एक दिन, कपिलधार जब जाय। योगी के दर्शन हुए, मन की बात बताय
१३१९ योगी जी महराज दें, षोडाक्षर का मंत्र। जाप करे से कुछ मिले, तुझे योग का तंत्र
१३२० सागर सीपी का कीड़ा, पर्वत ना चढ़ पाय। किन्तु करेगा यत्न तो, कुछ योगासन पाय
१३२१ पत्थर का टुकड़ा उठा, लाल रंग का होय। निमोणकर के हाथ रख, योगी अदृश्य होय
१३२२ नासिक फिर दर्शन दिये, निमोणकर हर्षाय। सदगुरु के पकड़े चरण, परिचय प्रश्न कराय
१३२३ लाल पाथरा याद कर, दिया तुझे जो मूढ़। परिचय मेरा था वही, रहस जाना गूढ़
१३२४ नाम गजानन है मेरा, रहता हूं शेगांव। अब तू मेरे साथ चल, बढाय अपने पांव
१३२५ निमोणकर जी चल पड़े, श्री गायब हो जाय। अभी अभी तो साथ थे, अभी कहीं ना पायं
१३२६ थके थकाए निमोणकर, धुमाल के घर जाय। ओसारे बैठे वहाँ, फिर दर्शन पा जायं
१३२७ धुमालजी समझाय कहें, पत्थर लाल संजोय। पूजन अर्चन भी करो, योगासन भी होय
१३२८ वैसा करें निमोणकर, योग साधना पाय। कृपा गजानन की भई, भक्ती में लग जाय

तुकाराम की प्रार्थना फलीभूत हो जाय

१३२९ तुकाराम कोकाटे नाम, भक्त रहे शेगांव। जीवित ना सन्तान रहे, जीवन भरा दुखाव
१३३० मन्नत श्री से मांगता, आयुष दें सन्तान। एक पुत्र का आपको, दे दूंगा मैं दान
१३३१ मन इच्छा पूरण करे, श्री गजानना साय। मन्नत जो की थी मगर, तुकाराम बिसराय
१३३२ नारायण लड़का बड़ा, होय गया बीमार। तबियत नहीं सुधर रही, व्यर्थ सभी उपचार
१३३३ मरणासन्न पड़ा लड़का, याद मनौती आय। इसको श्री अर्पण करूं, प्राण अगर बच जाय
१३३४ तुकाराम की प्रार्थना, फलीभूत हो जाय। नारायण धीरे धीरे, ऊपर नजर उठाय
१३३५ पुत्र निरोगी हो गया, पूर्ण मनौती कीन। तुकाराम निज बाल को, मठ में ही रख दीन


विरह विठ्ठला का सहा नहीं अब जाय

१३३६ उन्नीस सौ दस वर्ष में, जुलाइ महिना आय। हरि पाटिल को साथ ले, श्री पंढरपुर जाय   
१३३७ एकादशी अषाढ़ का, मेला पंढरपूर। रेल पेल सी मच गई, भक्तों की भरपूर
१३३८ उत्सव पूरा होय तो, बन्द सभी आवाज। विट्ठल मूरत सामने, बैठ गये महराज
१३३९ देखें मूरत एकटक, फिर कहने लग जायं। हे भगवन हे विट्ठला, हे पंढरि के राय
१३४० धरती पर घूमत रहा, ईश्वर का आदेश। भक्त कामना पूर्ति का, पूर्ण हुआ उद्देश
१३४१ सब कारज पूरा हुआ, जो अवतार लिया। भादव महिने रहा, चरणों में अवलिया
१३४२ कर जोड़े फिर गजानना, अंखियन आंसू आय। विरह विट्ठला का श्री से, सहा नहीं अब जाय
१३४३ हरि पाटिल पूछन लगे, आंसू क्यों श्रीनाथ। सेवा में कुछ भूल हुई, मेरे सदगुरु नाथ
१३४४ तू मत जा विस्तार में, कहें पकड़ हरी हाथ। इतना ही तू समझ ले, कुछ दिन का है साथ
१३४५ पाटिल चिन्तित हो गये, आया भादवमास। चौथ गणपति के दिवस, भक्त बुलाए पास
१३४६ मठ में सबै बुलाय के, गणेश जी बैठाव। दूजे दिन षि पंचमी, जल में उन्हें बहाव
१३४७ अन्त क्रिया मम देह की, इसी तरह से होय। दुःख नहीं कोई करे, उत्सव आनंद होय
१३४८ मैं तो स्थित हूँ इसी जगह, भक्तों की सुध लेय। गीता में जैसा कहा, देह बदलना होय

सतचित आनन्द लीन हुए श्री गजानन महाराज

१३४९ उन्नीस सौ दस माह नवम, दिन था वह गुरुवार| उच्चारत जय गजानन, छोड़ दिया अवतार
१३५० सच्चित आनंद लीन हुए, श्रीगजानन महराज। देह स्थिर हुई देखकर, बिलखत भक्त समाज
१३५१ छाती कूटें नर नारी, चले गये महराज। अवतारी ने छोड़ दिया, अनाथ हमको आज
१३५२ ज्ञान दीवड़ा बुझ गया,सूखा सूख सागर। हाय काल ने छीन ली,सपन भरी गागर
१३५३ पार्थिव शरीर के करें, दर्शन सब नर नार। शिष्य इकठ्ठे हो गये, करते सभी विचार
१३५४ चारों दिश दौड़ा दिये, दूत खबर के साथ। भक्त सभी जायं तो, दें समाधि श्रीनाथ
१३५५ पार्थिव शरीर सन्त का, गर्म तवे सा होय। भाल रखा नवनीत जो, तुरत पिघलता होय
१३५६ श्री दर्शन को आन लगे, दूर दूर से लोग। भजन भाव से गान लगे, ताल बजावत लोग
१३५७ मेला सा भरने लगा, भक्त आयं शेगांव। बिदा सन्त को दे रहे, विभोर भक्ती भाव
१३५८ रथ सुन्दर सजवाय के, श्री को दिया रखाय। अन्तिम यात्रा सन्त की, गांव गली से जाय
१३५९ आगे बाजे बज रहे, भजन मण्डली ताल। नाद होय जय विठ्ठला, उड़े अबीर गुलाल
१३६० हार फूल से ढंक गई, श्री की पार्थिव देह। प्रसाद पैसे भी चढ़े, अपार भक्ती स्नेह
१३६१ सूरज उगते यात्रा, वापस मठ में आय। अन्तिम पूजन आरती, श्री जी की हो जाय
१३६२ जय औलिया गजानना, नारे भक्त लगायं। आसन पर श्री को बिठा, अन्तिम दर्श करायं
१३६३ फिर जय स्वामी गजानन, गर्जन भक्त करें। द्वार समाधी बन्द किया, नैनन नीर झरे
१३६४ गण गण गणात बोते बोल, जय जय गजानना। राणा हैं शेगांव के, योगी गजानना

श्री हरिहरार्पणमस्तु शुभं भवतु

  (उन्नीसवाँ अध्याय समाप्त )



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