Gajanan Maharaj

Wednesday, May 27, 2020

Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-14


अध्याय चौदह

 बण्डू  तात्या स्वर्ण मोहरें पाय

९३३ गांव खेर्डा में रहे, बंडू तात्या एक। सुभाव के सज्जन बड़े, सीधे सादे नेक ॥
९३४ बनी रहे घर में सदा, महमानों की भीड़। आव भगत सबकी करें,खरचे की ना पीड ॥
९३५ कपास के व्यापार में, हुआ बहुत नुकसान। तात्या कम नाही करे, महमानों का मान ॥
९३६ धन संचय खुट जाय फिर, करजा भी हो जाय। घर जमीन गिरवी पड़े बरतन भी बिक जाय ॥ 
९३७ साहुकार करने लगे, तंग रात और दिन। भोजन के लाले पड़े, तात्या दमड़ी हीन ॥
९३८ धन के साथ चला गया, वैभव सुख सारा। घर में दुखिया हो गया, तात्या बेचारा ॥
९३९ जहर खाय मर जाय पर, जहर कहाँ से लाय। मरण मिले निश्चित नहीं, कूदे कूंए माय ॥
९४० हिमालया की गोद में, रक्खूं जाकर प्राण। प्रण करके बण्डू तात्या, घर से करे प्रयाण ॥
९४१ चलते चलते राह में, मन में कई विचार। प्रभु ने मो पे क्यों किया, इतना अत्याचार ॥
९४२ तुम को कहते दया निधी, मो पे दया न कीन। झूठे सब गुणगान तव, कवियों ने लिख दीन ॥
९४३ स्टेशन आ पहुँचे वहाँ, एक विप्र मिल जाय। हरिहर है शेगांव में, हरिद्वार क्यों  जाय ॥
९४४ तात्या अचरज में पड़े, विप्र कहाँ से आय। वह तो सब कुछ जानता, मैं पहचानू नाय ॥
९४५ मन ही मन निश्चय किया, श्री दर्शन को जाय। आ पहुंचा शेगांव तो, गजानना मुस्काय ॥
९४६ क्यों रे तात्या प्राण तजे, हिमालया को  जाय। आतम हत्या पाप है, हताश मत हो जाय ॥
९४७ आज प्राण भी दे दिया, प्रपंच से घबराय। भोग भोगने के लिये, जनम दूसरा पाय ॥
९४८ मत जा पगले हिमालया, गंगा डूब न मर। पल को भी मत रुक इधर, तू जा सीधा घर ॥
९४९ तात्या तेरे खेत में, महिषासुर का स्थान। बबूल पूरब की तरफ, मध्य रात सुनसान ॥
९५० खोद अकेला जाय के, जमीन तू गज एक। धन तुझको इतना मिले, बचे ना करजा एक ॥
९५१ तात्या तब खुश होय के, लौटा अपने गांव। रात खेत में जाय के, लगा जमीन खुदाय ॥
९५२ जमीन खोदी एक गज, कलश एक टकराय। मुहर चार सौ स्वर्ण की, कलश माय मिल जाय ॥
९५३ स्वर्ण मोहरें पाय कर, वापस घर को आत। जय जय गजानना कहे, नाचे बण्डू तात ॥
९५४ भाव अनन्या श्री शरण, तात्याजी आ जाय। फिजूल खर्ची रोक दे, गजानना समझाय ॥
९५५ परिजन रिश्तेदार सब, सुख के भागीदार। दुख में केवल ईश्वर, भजियो बारम्बार ॥
९५६ श्री की शिक्षा उपयोगी, तात्या जी गहिलीन। स्वधर्म का पालन किया, चित्त गजानन लीन ॥

Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-14
Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-14

उंकारेश्वर नर्मदा,
रोके प्राणान्त

९५७ बंकट बजरंग मारोती, मार्तण्ड पाटील। चारों श्री दर्शन आयें, संग साथ सब मिल ॥
९५८ श्री से विनय करें चलो, उंकारेश्वर स्थान। सोमवती के पर्व पर, करें नर्मदा स्नान ॥
९५९ सोमवती के स्नान की, पुराण महिमा गाय। आप हमारे साथ चलें, पर्व सफल हो जाय ॥
९६० मेरे पासहि नर्मदा, क्यों जाऊं उंकार। मैं मठ में ही बैठकर, करूं नर्मदा पार ॥
९६१ ना कहते श्री गजानना, भगतन पकड़े पैर। चारों जिद करने लगे, विनय सुनो इस बेर
९६२ फिर समझाय गजानना, मंदिर में जो कूप। इसमें है जो जल भरा, वही नर्मदा रूप ॥
९६३ इसे छोड़ जाऊॅं वहाँ, रुष्ट नर्मदा होय। जिद न करो जाओ तुम्ही, सब शुभ मंगल होय ॥
९६४ जिद फिर भी ना छोड़ते, ले जायेंगे साथ। कोसोगे विपरीत घटे, कहें गजानन नाथ ॥
९६५ इस चर्चा के बाद सभी, उंकारेश्वर जांय। सोमवती के पर्व पर, नदी घाट भर जांय ॥
९६६ भक्तन ऐसी भीड़ पड़ी, तिल भर जगह न पाय। स्नान,बेल पूजन,भजन, आरत में रम जाय ॥
९६७ मंदिर में अभिषेक करें, बाहर बर्फी खांय। गर्दी ऐसी हो रही, शब्द समझ ना पाय ॥
९६८ नहान पावन हो रहा, सजी नर्मदा माय। पदमासन बैठे वहां, श्री गजानना साय ॥
९६९ चारों भक्तों ने किया, दर्शन श्री उंकार। वापस जाने के लिये, नाव खड़ी तैयार ॥
९७० बैठ नाव में चले सभी,स्टेशन मोरटका। नदी बीच चट्टान अड़ी, नाव लगा धक्का ॥
९७१ नाव तले पटिया फटा, एक छिद्र हो जाय। जल भीतर आने लगा, भक्त सभी घबराय ॥
९७२ नाविक कूदे नाव से, गजानना थे शान्त। गण गण गणात गा रहे, भजन लीन थे सन्त ॥
९७३ मार्तण्ड बजरंग मारोती बंकट हुए उदास। आये थे हरिभजन को, उलटी गिनते सांस ॥
९७४ सदगुरु माफ करें हमें , मानी ना तब बात। सजा उसी की मिल रही, मैया करती घात ॥
९७५ अब ना करे उपेक्षा, शब्द आपका एक। गुरु गजानन बचाय लो, भक्त आपके नेक ॥
९७६ श्री जी फिर करने लगे, स्तवन नर्मदा माय। दया करो देवि नर्मदा,अशुभ नाशिनी माय ॥
९७७ जल बाहर जाने लगा, नैया ऊपर आय। नैया साथै नर्मदा, मैया दरश दिखाय ॥
९७८ कटि तक भीगे वस्त्र थे, घुंघराले थे केश। देवी रेवा दरश दिये, मछुवारन के भेष ॥
९७९ रेवा तट नैया लगी, बची सभी की जान। मछुवारन का कर रहे, सभी भक्त गुण गान
९८० परिचय उसका पूछते, आप कहाँ से कौन। कन्या में उंकार की,नाम नर्मदा होन ॥
९८१ नमन करे वह गजानना, फिर जल मध्य समाय। बिजली जस नभमें दिखे,बादल में छिप जाय ॥
९८२ सदगुरु से पूछन लगा, बंकट बारम्बार। देवीजी वह कौन थी, लुप्त हुई जो नार ॥
९८३ श्री कहते साक्षात सुता, ऊंकारेश्वर होय | दुविधा मन में ना रखो, भक्त तारिणी होय ॥
९८४ नरमदे हर हर बोलो, जय जय नरमदे हर। गण गण गणांत बोते बोल,जय गजानना हर ॥

विडा श्रीजी भेजते माधवनाथ सन्त

९८५ चित्रकूट के सन्त इक, माधवनाथ कहाय। उनके शिष्य सदाशिवा, श्री दर्शन को आय ॥
९८६ सदाशिवा का मित्र भी, संग एक आ जाय। दोनों को सम्मुख बिठा, श्री भोजन करवाय ॥
९८७ दोनों को छाती लगा, सन्त प्रेम दिखलाय। यथायोग्य सत्कार कर, उनको बिदा कराय ॥
९८८ माधव सन्ता से कहो, जाकर सदाशिवाय। साथै भोजन हुवा विडा, श्री आपको भिजाय ॥
९८९ पान विडा श्री जो दिये, नाथ गुरु को देव। क्या सचमुच शेगांव को, आप गये गुरू देव ॥
९९० माधवनाथ कहे शिष्यों, उस दिन ऐसा होय। भोजन समय गजानना, स्मरण किया मम होय ॥
९९१ हम संतों की भेंट तो, इसी तरह से होय। शरीर दोनों के पृथक, प्राण एक ही होय ॥
९९२ गहरा यह ज्ञान अभी, योग करे से जान। सिद्ध योग योगी करे, योग बड़ा बलवान ॥
९९३ गण गण गणात बोते बोल, जय जय गजानना। राणा हैं शेगांव के, योगी गजानना ॥

श्री हरिहरार्पणमस्तु ॥ शुभं भवतु ॥

(चौदहवाँ अध्याय समाप्त )


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