Gajanan Maharaj

Wednesday, May 27, 2020

Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-07


अध्याय सात


मल्ल युद्ध मर्दन किया हरी पाटील का मान

४१४ महादजी के पुत्र दो, कुकाजी कड़ताजी। पाटील वंश गणेश कुल, मां लक्ष्मी राजी
४१५ घर में था सोना भरा, भारी जमिंदारी। सन्तों की सेवा करें, बड़भागी भारी
४१६ गोमाजी महाराज का, भक्त घराना होय। कडता के छः पुत्र थे, कुका पुत्र ना कोय
४१७ कड़ताजी तो ना रहे, गमन किया परलोक। पालन छः सन्तान का, भार कुकाजी तोक
४१८ खण्डू गणपति नारायण, मारुति हरि किसना। यही नाम सन्तान के, काम कुश्ति लड़ना
४१९ कूकाजी के बाद में, खण्डु जी सिरमौर। मारुति उत्सव गांव में, पाटिल बन्धु जोर
४२० पाटिल बन्धू जो कहें, वही गांव में होन। मारपीट झग़डे करें, विरोध करता कौन
४२१ मुंह में आये सो बकैं, करैं आयु विचार। सज्जन साधू सन्त संग, वैसा ही व्यवहार
४२२ मन्दिर में महराज का, वे करते उपहास।  कहते क्यों रे पागले, खाता दलित छास
४२३ कुस्ती हमसे लड़ा, देखें तेरा योग।  मारेंगे छोड़े नहीं, यदि ना करे प्रयोग
४२४ श्रीजी उत्तर नाय दें, सुन लें उनके बोल। गुस्सा बिलकुल ना करें, मन लाते मखोल
४२५ रोज रोज व्यवहार यह ,दुखी भास्कर होय। महाराज से वह कहे, इधर रहना होय
४२६ पाटिल के षटपुत्र तो, होय गरे मगरूर।  धन सम्पति ताकत मिली, मद में रहते चूर
४२७ समझायें श्री गजानना, भास्कर ना तज धीर।  परम भक्त मेरे सभी, ये पाटिल के वीर
४२८ ये थोड़े उद्दण्ड मगर, हैं मन के भोले।  सन्तों की इन पर कृपा, हैं कुछ बड़बोले
४२९ जमींदार उद्दण्ड तो, गुण उन का कहलाय। सत्ता की पहचान ये, बाघ से डरे गाय
४३० नरम अगर तलवार हो, अगन अगर हो शीत। क्या उनका उपयोग फिर, ना ऐसी ना रीत
४३१ बदलत समय सुभाव में, परिवरतन भी होय। मटमैला बरसात जल, जाड़े निरमल होय
४३२ एक दिवस पाटिल हरी, मारुति मन्दिर आय| हाथ पकड़ महाराज का, कहता कुस्ति लड़ाय
४३३ व्यंग करे बैठा यंहा, 'गणि गण गण' मत बोल। संग अखाडा चल मेरे, खोलूं तेरी पोल
४३४ आज हराउंगा तुझे, बुलन्द तेरा नाम। यदि मुझको तू चित करे, दूंगा तुझे इनाम
४३५ श्री ने उसकी मान ली, पहुँच अखाड़े जायं। फिर कौतुक ऐसा करें, बैठ सुखासन जांय
४३६ हरी अगर कहलाय तू, पहलवान दमदार। थोड़ा मुझे उठाय ले, मल्लों के सरदार
४३७ हरि कोशिश करने लगा, कोशिश थी बेकार। दांव पेंच भी व्यर्थ गये, हरी पसीना तार
४३८ श्री गजानना हिले नहीं, हरी हिलोरे खाय। मन ही मन सोचन लगा, परबत जैसी काय  
४३९ देखन में दुबले लगे, ताकत भारी होय। इनके आगे स्यार हम, यह गजराजा होय
४४० रहे भौंकते श्वान सम, बाघ देय ना कान। मन मन हरी नमन करे, जय जय हे गजानन
४४१ महाराज हरि से कहें, अब दे हमें इनाम। या फिर कुस्ती में हरा, ओय रे पहलवान
४४२ कुश्ती दंगल शौक तो, मर्दाना है खेल। बाल किशन बलरामजी,दोनों भाई खेल
४४३ सारे गोकुल बाल को, किशन किये बलवान। तुम भी कुछ वैसा करो, मेरा यही इनाम
४४४ कृपा आपकी होय तो, सब बालक बलवान। हरि पाटील यह बोलते, छोड़ दिया अभिमान
४४५ पाटील बन्धु शेष सब, हरी पिलावे डाँट। तू जोगीसे डर रहा, समझ आवे बात
४४६ हम पाटिल परिवार के, गांव के जमींदार। पांव जोगड़े सिर झुके, यह विचार दुश्वार
४४७ करता साधू वेश में, उलटे सीधे काम। भोले लोग लुगाई को, ठगना उसका काम
४४८ पागल के पाखण्ड से, जन की रक्षा होय। यह कर्तव्य हमारा है, इसमे त्रुटि ना होय
४४९ बिना परीक्षा साधु का, नाही करो सम्मान। परखा गया कसौटी पर, शुध सोना वह जान
४५० अब पाटिल बंधू चले, साधु परीक्षा काज। गन्ने का गठ्ठर लिये, मन्दिर मारुती राज   
४५१ हरी कुछ बोला मगर, बाक़ी करें सवाल। पगले, तू खायगा , गन्ने लाये बाल
४५२ खाना हो गन्ना अगर, शर्त मान ले एक। गन्ने से मारें तुझे, अंग उठे ना रेख
४५३ चोट पड़े पर देह पर, उठे कोई लकीर। मानेंगे सच्चा तुझे, योगी सन्त फ़क़ीर
४५४ श्रीजी कुछ बोले नहीं, सुन बालोंकी बात। क्षमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात
४५५ पाटिल सुत मारुति कहे, साधू ना तैयार। यह तो भैय्या डर गया, खाय गन्ना मार
४५६ गणपति पाटिल यूँ कहे, मौन सम्मति होय। फिर सारे भाई मिले, श्री पर हमला होय
४५७ हमला होते देखकर, नर नारी भग जाय। एक अकेला भास्कर, उनको रोक पाय
४५८ समझाये मानो नहीं, अगर इन्हे तुम सन्त। दीन हीन ही मानकर, क्षमा करो गुणवन्त
४५९ तुम पाटिल कुल दिवड़े, दया तुम्हारा धर्म। कर शिकार तो शेर का, नहीं मारना वर्म
४६० इस पर पाटिल बाल कहे, सुनी तुम्हारी बात। जनता इसको मान दे, कहती योगी नाथ
४६१ देखें इसका योग अब, या फिर खुलती पोल। देख तमाशा दूरसे, बीच बोलो बोल
४६२ फिर श्री को पीटन लगे, पाटिल की सन्तान। जस गेहूँ की बालियां, कूटे खेत किसान
४६३ महाराज मुसकाय के, देखे उनकी ओर। एक दाग ना चोट का, तन पर नाही कोर
४६४ बच्चों दुखते हाथ क्या, बैठो रस पिलवाय। भयातुर लड़के मगर, श्री चरणों लिपटाय
४६५ गन्ना हाथ उठायकर, निचोड़ते महाराज। मधुरस भरते पात्रमे, धन्य धन्य महाराज
४६६ गन्ना सारा निचोयकर, रस पीने को देय। बिन चरखी रस पायकर, बालवृंद खुश होय
४६७ लीला श्री महाराजकी, दन्त कथा ना होय। यह तो शक्ति योगकी, जिसका पार होय
४६८ योग करो श्री गजानना, देते यह निर्देश। योग किये आरोग्य मिले, बलशाली हो देश
४६९ देते सीख गजानना, योग करो सब कोय। भारत सारा योग से, ताकतवर तो होय
४७० बालक सारे नमन करें, और गमन कर जाय। खण्डू पाटिल सामने, सारी बात बताय
४७१ पाटिल ने किस्सा सुना, और चकित रह जाय। श्री दरशन के वासते, तुरत दौड़ता आय
४७२ खण्डु फिर जाने लगा, प्रतिदिन दर्शन आस। श्री पर श्रद्धा बढ़ गई, श्रद्धा संग विश्वास
 
Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-07
Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-07

पुत्र पाय खण्डू पाटील भीखू नाम कहाय


४७३ खण्डू से कूका कहे, तू नित दर्शन जाय। महाराज के सामने, क्यों गूंगा हो जाय
४७४ मैं अब बूढ़ा हो गया, तुझे नहीं सन्तान। बिनती कर महराज से, सन्तति करें प्रदान
४७५ यदि वे सच्चे सन्त तो, इच्छा पूरण होय। लाभ उठा तू सन्त का, सुत दे देवें तोय
४७६ कूकाजी ने जस कहा, तस खण्डू कर जाय। पुत्र जनम हित नाथ से, बिनती वह कर जाय
४७७ बोले तब महाराजजी, भला हुई क्या बात। काहे याचक बन रहे, धन बल की बरसात
४७८ मालिक खेत दुकान का, तू करखानेदार धन सत्ता के सामने, हर कोई लाचार
४७९ ब्रम्हदेव दें पुत्र तुझे, तू जो दे आदेश। तेरा शब्द टल सकें, विदर्भ के इस देश
४८० खण्डू फिर कहने लगा, ना बस की यह बात। फसल होय बरसा गिरे, वह ना मनुज बिसात  
४८१ वरषा ना बरसाय तो, खेती में नहिं जान। वरषा बरसे बाद ही, करतब करें किसान
४८२ इसी तरह सन्तान सुख, भगवन्ता के हाथ। मैं तव चरणों में पड़ा, रखो निपूत नाथ
४८३ अरज सुनी निज भक्त की, विहंसे श्री महराज पूत रतन भगवन्त दे, विनय करू तव काज
४८४ विनय सुनेंगे वे मेरी, भीख तुझे मिल जाय। ईश कृपा से पूत मिले, भीखू नाम सुहाय
४८५ पूत मिले तू धनपती, बामन भोज कराव। भोजन में दो आमरस, हरिक साल जिमवाव
४८६ श्रीजी के आशीष से, खण्डू बालक पाय। खण्डू कूका दोय जन, आनन्दित हरषाय
४८७ कूका पोता पाय कर, खुशियां खूब मनाय। गुड़ गेहूँ का दान कर, मिठाइयाँ बटवाय
४८८ शिशु का नाम रखा भीखू, ब्राह्मण भोज कराय। शुक्ल पक्ष के चाँद सा, बालक बढ़ता जाय
४८९ वैभव पाटिल का बढ़ा, दुखी देशमुख होय। देशमुख पाटील का बैर पुराना होय
४९० गुट दोनों विपरीत थे, जैसे अंक छतीस। सन्धि मिले तो घात करें, मनमे रहती टीस
४९१ कुछी समय के बाद में, निधन कुकाजी होय। जस खण्डू के शीश से, छत्रहि टूटा होय
४९२ जिस काका के कारणे, खण्डू था बरजोर। छीन लिया हरि ने उसे, अब खण्डू कमजोर
४९३ देशमुखों को मिल गया, मौका ऐसा एक। पाटिल पर कीचड़ पड़े, बात हुई अतिरेक
४९४ घटना का वर्णन सुनो, आगे का अध्याय। चरित गजानन का पढ़ो, मन में श्रद्धा लाय
४९५ गण गण गणात बोते बोल, जय जय गजानना। राणा हैं शेगांव के, योगी गजानना

श्री हरिहरार्पणमस्तु शुभं भवतु

(सातवाँ अध्याय समाप्त )



No comments:

Post a Comment