Gajanan Maharaj

Wednesday, May 27, 2020

Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-05



अध्याय पाँच


शिव मन्दिर में बैठ गये पद्मासन योगी


२७१ रहते थे शेगाव श्री, लगते थे मेले। महिमा फैली आन लगे, भक्तों के रेले
२७२ श्री सिद्धि ना चाहते, जंगल भटके जायं। महिने महिने दूर रह, वापस गांव आयं
२७३ मनमौजी चलते यहां, बैठ वहां पर जाय। योगी आप महान हैं, परिचय कोई पाय
२७४ एक समय महराज श्री, पहुंचे पिंपल गांव। एक शिवालय था वहां, जंगल बाहर गांव
२७५ पदमासन में बैठते, फिर समाधि लग जाय। ग्वालबाल संझा समय, देख उन्हें चकराय
२७६ देख उन्हें चकराय वे, कुछ भी समझ आय। जीवित या मृत भूत हैं, या फिर हैं देवाय
२७७ कोई जल अर्पण करे, कोई पुष्प चढ़ाय। रक्खे भोजन सामने, भजन भाव से गाय
२७८ देर हुई गौपाल सब, वापस घर को जायं। मंदिर वाली बात को, सबको दे बतलायं
२७९ भोर भई ग्रामीण भी, शिव मन्दिर में आयं। महाराज जस थे जहां, तस ही बैठे पायं
२८० कुछ बोले योगी पुरुष, तंग करियो कोय। पिंडी तज शिवजी स्वयं, दर्शन देते होय
२८१ अभी समाधी मौन में, ले चलते हैं गांव। एक पालकी लाय के, उसमें उन्हें बिठाव।।
२८२ पालकि उन्हें बिठाय के, चले संग नर नार। शहनाई बजने लगी, चढ़े फूल वा हार
२८३ घंटे ' घड़ियाल बजे, भजन और करताल। अंग गजानन हो गये, गुलाल लाली लाल
२८४ जय जय योगीराज का, होय रहा उद्घोष। पहुँचे मन्दिर मारुती, तभी थमा यह जोश
२८५ सदगुरु हिलडुल ना करें, दिवस बीतता जाय। स्तवन -उपोषण कुछ करें, लोग विचारे जायं
२८६ समाधि बाहर गये, तभी सदगुरू नाथ। हर्षित नर नारी हुए, चरणों रखते माथ
२८७ हर कोई नैवेद के, थाल लगाता जाय। थोड़ा कुछ स्वीकार कर, श्रीजी भोग लगाय
२८८ अगले मंगलवार को, हाट लगा शेगांव। लोग गये बाजार में, रहते पिंपल गांव
२८९ सहज बात ही बात में, निकली ऐसी बात। पिपलगांव के भाग्य से, आया औघड़नाथ
२९० ज्येष्ठ सन्त वह औलिया, धन्य हमारा गांव। जाने ना दें अब कहीं, आय हमारे ठांव
२९१ बात सुनी जब बंकटा, पहुँचा पिंपलगांव। हाथ जोड़ विनती करे, छोड़ा क्यों शेगांव
२९२ सूना घर बिन घर आप के, चिन्तित सारा गाँव गाड़ी लाया साथ में, चलें आप शेगांव
२९३ बच्चे माँ से दूर रहें, ऐसा कैसे होय। दर्शन बिन श्री आप के, भाविक भूखे सोयं
२९४ त्यागूं यहीं शरीर जो, श्री ना आवें साथ। द्रवित होय संगे चले, मानी बंकट बात
२९५ दुखिया पिंपलगांव था, जैसा ब्रज का गांव। कृष्णा तो गोकुल गये, गजानना शेगांव
२९६ बंकट अक्रुर सा भया, ले जाये भगवान। साहुकार वो गांव का, चुपहि रहे सब जान
२९७ गाड़ी में महाराज जी, कहते बंकटलाल। कैसा साहूकार तू, हड़प पराया माल
२९८ मेरे मन की बात सुन, मैं क्यों भागा होय। तेरे घर आऊँ मगर, डर लगता है मोय
२९९ विष्णू भार्या लक्षमी, लोकमात ही होय। घर में ऐसी शक्ति को, कैद रखे तू होय
३०० माँ जगदम्बा का ऐसा, देखा मैंने हाल। मेरी क्या गिनती वहां, भागा मैं तत्काल
३०१ नत मस्तक बंकट कहे, सुनिये सद्गुरुनाथ लक्ष्मी मैय्या है वहां, जहां गजानन नाथ    
३०२ मुझको प्रिय ना सम्पदा, घर आप का निवास। घर के मालिक आप हैं, मैं तो केवल दास
३०३ जैसी मरजी आप की, वैसे रहिये आप। बस इतनी ही प्रार्थना, हमें ना भूलें आप
३०४ आप जगत उद्धार हित, जावें बाहर गांव। लौट सदा आते रहें, अपने घर शेगांव
३०५ चर्चा यूँ चलती रही, पहुंचे वे शेगांव। कुछ दिन वहां निवास कर, फिर निकले अड़गांव


Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-05
Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-05

भास्कर से मिले, कूप किया जीवन्त


३०६ दिवस एक बैसाख का, सूखी नदिया ताल। कड़क उन्हाले गजानना, चले मारुति चाल
३०७ चलते चलते प्यास लगी, सूखन लागे ओंठ। धार पसीने की बहे, पाय जल का स्रोत
३०८ भरी दुपहरी खेत में, देखा एक किसान। काम कर रहा धूप में, नाम भास्कर जान
३०९ पास वृक्ष की छांव में, मटकी रक्खी होय। मटकी में था जल भरा, घर से लाया होय
३१० महाराज पहुँचे वहां, कहने लगे किसान। पीने को जल दे मुझे, होगा पुण्य महान
३११ भास्कर कहता व्यंग से, तू क्या पंगू दीन। हट्टा कट्टा तन तेरा, क्या समाज को दीन
३१२ तुझ को जल देऊँ अगर, उलटा होगा पाप। दया कर्म के वास्ते, कोई पाले सांप
३१३ शरण कोइ क्या चोर को, अपने घर देता। तुझसे मेहनत चोर को, मैं नहिं जल देता
३१४ मुंह काला कर आपना, अरे निठल्ले भाग। तुम जैसों ने जन्म लिया, हमरे फूटे भाग
३१५ भास्कर का व्याख्यान सुन, मंद -मंद मुसकाय। थोड़ी दूरी एक कुंवा, महाराज जी जाय
३१६ वह तो है सूखा कुँवा, वहां क्यूं भला जाय। कोसों तक पानी नहीं, भास्कर यूं कह जाय
३१७ सुन बोले महाराजजी, फिर भी यत्न करूं। जलाभाव से त्रस्त तुम, मैं कुछ कर्म करूँ
३१८ शुद्ध हेतु कर्ता रहे, ईश्वर करे सहाय | मैं समाज हित कुछ करूं, तू ही अभी कहाय
३१९ ऐसा कह श्री गजानना, पहुँचे कूंवे आय। कूंवे में एक बून्द भी, जल की नाहीं पाय
३२० कुछ निराश सन्ता हुए, बैठ वृक्ष की छांम। ईश स्मरण करने लगे, बन्द नयन अभिराम
३२१ आकोली इस गांव में, जल का है दुष्काल। हे वामन हे राघवा, हे जगदीश विशाल
३२२ विनय करुं हे विठ्ठला, दया करो भगवान। देव दूर दुष्काल करो, भरो कूप में पान
३२३ विनय गजानन सन्त की, सुन ली श्री भगवन्त। तले माय फूटी झिरी, कुंवा हुवा जीवन्त
३२४ क्षण भर में जल भर गया, पान करे महराज। भास्कर देखे दॄश्य यह, बुद्धी गिरती गाज॥
३२५ युग बीता सूखा कुंवा, सोचन लगा किसान। पल में जल मय कर दिया, हैं ये सन्त महान
३२६ दौड़ा खेती छोड़ के, सन्त चरण लिपटाय। भीख दया की मांगता, माफी मांगत जाय
३२७ नर शरीर में ईश्वर, मैं नाही पहिचान। बुरे बोल बोलत रहा, क्षमा करें भगवान
३२८ अब मैं ना छोडू चरण, मेरे सदगुरूनाथ। तज माया तेरी शरण, लौटाओ ना नाथ
३२९ सदगुरु कहते भास्कर, जल तेरे हित लाय। प्रपंच क्यों तू छोड़ता, अब तो बाग लगाय॥
३३० भास्कर भक्तीभाव से, कहने यूं लग जाय। साक्षात्कार सुरंग मन, अंधकूप फट जाय
३३१ भाव के जल से हे गुरु, बाग़े भक्ति लगाऊं। वृत्ति मेदिनी माय मैं, वृक्ष सुनीति लगाऊं
३३२ सत्कर्मों की पुष्य क्यारियां, यहाँ -वहाँ लग जाय। ना बाड़ा ना बैल की,चाहत अब रह जाय
३३३ श्रोतागण ऐसे हुआ, भास्कर का उद्धार। सन्तों की संगत भली, हम सब करें विचार
३३४ जल जब कूँवे में लगा, दौड़ा जन समुदाय। अमृत सम शीतल मधुर, कूँवे का जल पाय॥
३३५ लोग सभी जयकार करें, जय जय गजानना। सिद्ध योगि महाराजजी, जय जय गजानना
३३६- गण गण गणात बोते बोल, जय जय गजानना राणा हैं शेगांव के, योगी गजानना ।।     
 

श्री हरिहरार्पणमस्तु शुभं भवतु

(पाँचवा अध्याय समाप्त )



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