Gajanan Maharaj

Wednesday, May 27, 2020

Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-04


अध्याय चार

 
Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-04
Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-04

जानकिराम नही देवे, अगन चिलम के काज

१९९ श्री रहते बंकट घरे, तब की है यह बात। अखातीज का र्व  था, बच्चे बैठे साथ
२०० महाराज कहने लगे, तलब चिलम की होय। बच्चों देखो अगन अगर, कहीं पास में होय
२०१ बालक सब खुश होय के, तम्बाकू भर लाय। चिलम जलाने के लिये, अगन नहीं वे पाय
२०२ बालक सब मिल बैठकर, करने लगे विचार। चूल्हे अभी जले नहीं, कस पाये अंगार
२०३ उनकी चिन्ता का बजन, बंकट देय उतार। इसी गली आगे रहें, जानकिराम सुनार
२०४ हर सुनार की दुकान में, अगन जरूरी होय। जब तक जले सीगड़ी, आगे काम होय
२०५ बंकट का निर्देश सुना, बालक देकर कान। तुरत फुरत पहुँचे सभी, जानकिराम दुकान
२०६ जानकिराम सुनार से, माँगे वे अंगार। गुस्सा होय मना करे, जानकिराम सुनार
२०७ अखातीज पावन दिवस, मैं ना दूँ अंगार। बालक जोड़ें हाथ कहें, मत करना इनकार
२०८ अगन चाहिये गजानना, भगवन के अवतार।  चिलम जलाने के लिये,  ले जाते अंगार
२०९ हम तो बालक बेअकल, आप बड़े विद्वान। कभी अशुभ होता नहीं, दिया साधु को दान
२१० अगर अगन दें आप तो, भाग्य जगेंगे आज चिलमपान यदि तृप्त हों, गजानन महाराज
२११ सुनार तो था दुरमती, करन लगा बकवास। गजानना साधु नहीं, गंजेड़ी पिश्शाच
२१२ गन्दे नाले लोटता, नंगा घूमे गांव। पागल सी हरकत करे, जात पात नहिं नांव
२१३ उसकी संगत में पड़ा, मूरख बंकटलाल। आगी मैं देऊँ नहीं, आज नहीं ना काल
२१४ यदि वह सच्चा सन्त है, क्यों मांगे अंगार। समर्थ तो पैदा करे, अपने दम अंगार
२१५ बालक वृन्द निराश हो, लौटे वापस आय। बात कही सुनार जो, श्रीजी को बतलाय
२१६ सभी हकीकत जान के, महाराज मुसकाय। बंकट ले काडी कहें, काडी चिलम जलाय
२१७ विस्मित बंकट कहे गुरु, रुक जायें  सरकार।मैं काडी को घीस कर, अगन करूँ तैयार
२१८ बंकट बकबक नाहि कर, काडी ले तू हाथ। घीसा घीसी मत करे, पकड़े रहे बस हाथ ।।
२१९ आज्ञा श्री की मानकर, बंकट काडी लेय। और उठा घीसे बिना, चिल्लम पर धर देय
२२० काडी चिल्लम पर धरी, हाय क्या चमत्कार ,चिलम मुहाने से हुए, प्रगट देव अंगार
२२१ प्रगट देव अंगार हुए, चिलम पियें महाराज। काडी फिर भी जली, यही साधु का राज
२२२ जानकिराम सुनार की, आगे सुनिये बात। अखातीज त्यौहार पर, भाग्य करे आघात
२२३ इमली गुड के सार संग, पूरण पोलि बनाय। पंगत पत्तल द्रोण की, भोज दिया परसाय
२२४ इमली गुड के सार में, इल्ली और कीड़े। बिन भोजन के हो गये, सब मेहमान खड़े
२२५ पितर उपोषण हीन रहे, जानकिराम उदास। अन्न भी सभी व्यर्थ गया, सारा सत्यानास
२२६ फिर वह मनमें सोचता,ऐसा क्यों हो जाय। अगन चिलम को नाहि दी, क्या उसका फल पाय
२२७ नई शुद्ध इमली रही, फिर क्यों इल्ली होय। बीज अभी कूड़े पड़े, कीट नाम ना होय
२२८ ज्ञानी सन्त गजानना, नहीं सका पहिचान। महाराज तो कल्पतरू, मैं बबूल ही मान
२२९ हाय हाय दुर्भाग्य मम, कैसा खेला दाव। सेवा का अवसर मिला, खोय रहा पछताव
२३० बंकट से बिनती करे, ले चल अपने साथ। महाराज के चरण पडूं, क्षमा करें मम नाथ
२३१ हे दयानिधि दया करो, भूल मेरा अपराध। कृपा अगनि से भस्म करो, तृण सम मम अपराध
२३२ आज मिला जो दण्ड मुझे, उतना ही बस होय। हे अनाथ के नाथ अब, अन्त देखो मोय ।।
२३३ सुन बोले महाराजश्री, झू बोलता होय। कीट नहीं गुड़सार में, दोष लगाता होय
२३४ लोग लुगाई लौटकर, देखें इमली सार। कीट रहित वह शुद्ध था, चकित हुए नरनार ।।

                    गुझिया जो मटकी रखी मांगे गजानना


२३५ मुकीन चन्दू भक्त की, कथा सुनो अब एक। संग गजानन कर जोड़े, बैठे भक्त अनेक
२३६ कोई पंखा झल रहा, कोई डाले हार। कोई मिसरी बाटता, कोई फल आहार
२३७ चन्दू जब महराज को, काटे आम खिलाय। आम नहीं मटकी रखी, दो गुझिया दे लाय
२३८ हाथ जोड़ चन्दू कहे, गुझिया कैसे लाऊँ। इच्छा हो गर आप की, मैं ताजी बनवाऊँ
२३९ ताजी नाही चाहिये, मटकी रक्खी लाव। झूठ बहाना ना करो, जल्दी जाकर लाव
२४० सभी भक्त कहने लगे, चन्दू ना कर देर। संत वाणि झूठी नहीं, पड़ता तू किस फेर
२४१ चन्दू घर को जाय के, स्त्री से करे सवाल। दो गुझिया मटकी रखी, है तो देय निकाल
२४२ अखातीज महिना गया, गुझिया तभी बनाय | सभी खतम तो हो गई, आज कहां से आय
२४३ आप कहें श्री के लिये, ताजी तल दूँ चार। घर में गुझिया के लिये, सामग्री तैयार
२४४ नहीं नहीं ताजी नहीं, प्रिय कर फिर तू याद। श्री ने कहा वही करें, कोई नहीं प्रमाद ।।
२४५ सुनकर ऐसे पति वचन, ढूँढन वह लग जाय। ढूँढत ढूँढत गूझिया, याद अचानक आय
२४६ दो नग गुझिया के बचे, रक्खे मटकी माय। महिना पूरा बीत गया, बिसर गई मैं हाय ।।
२४७ खंगाली जब मटकियाँ, दो गुझिया मिल जाय। सुखी थीं थोड़ी मगर, बूरा लग पाय
२४८ पति पत्नी हर्षित हुए, धन्य गजानन सन्त। चन्दू चरणों लोटता, श्री समर्थ भगवन्त
२४९ जानें भूत भविष्य को, वर्तमान तिरकाल। सन्त गजानन सिद्ध थे, अवतारी भूपाल

       माधव को यमलोक दिखा मुक्त किये राणा

२५० माधव था एक बामना, रहता चिचली गांव। उमर साठ की हो गई, तन में रहा ताव
२५१ भरी जवानी मगन रहा, घर घरनी संसार। अब कोई भी ना बचा, दुनिया लगे असार
२५२ माधव को बैराग हुआ, आया वह शेगांव। त्याग अन्न जल बैठता, गजानना के ठांव
२५३ दिन बीता तो गजानना, कहें कर उपवास। प्रभु का नाम लिया नहीं, बीत बरस दिन मास
२५४ जीव गया फिर बैद का, कोई लाभ होय। क्या मतलब जब घर जला, कुवा खुदाई होय
२५५ जीवन भर जिनके लिये, तू बावला रहाय। चले गए सब छोड़कर, इकला तू रह जाय
२५६ इस मिथ्या संसार को, माधव सच माना। वैसा फल जैसा करम, कहते गजानना
२५७ टारे टरै करम फल, क्यों हठ करता होय। नहीं सुनी महाराज की, माधव जिद्दी होय
२५८ अनशन पर बैठा रहा, रात बीतती जाय। मध्य रात्रि महराज जी, करतब एक दिखाय
२५९ यम राजा के रूप में, मुहँ खोले डकराय। दौड़े माधव की तरफ, अब माधव घबराय
२६० अब माधव घबराय के, अपनी जान बचाय। महाराज संकेत दें, काल यों हि खा जाय
२६१ माधव फिर बिनती करे, भेजो ना यमलोक। मृत्यु अगर देना मुझे, मिले विष्णु का लोक
२६२ महाराज मुसकाय कहें, तेरा अन्त समीप। गर तू चाहे माधवा, उज्ज्वल आयु प्रदीप
२६३ नहीं नहीं महराजश्री, अब ना आयु बढ़ाव। अब प्रपंच ना चाहिये, जीवन मुक्त कराव
२६४ श्रीजी कहें तथास्तु, पुनर्जन्म ना होय। बैरागी माधव मरा, जीवन मुक्ति होय ।।

गजानन जो चाहते पूरी होती बात

२६५ एक बार महाराज की, ऐसी इच्छा होय। पूजा वैदिक मंत्र से, भगवन्ता खुश होय
२६६ शिष्यों से कहने लगे, कुछ बामन बुलवाय। एक रुपय्या दक्षिणा, अरु प्रसाद पा जाय
२६७ सुन कर शिष्यों ने कहा, खरचा तो हो जाय। वैदिक बामन ना मिले, उनको कैसे लाय
२६८ बामन की चिन्ता नहीं, भेजेगें भगवन्त। जमा रुपय्ये हो गये, पूजा हूई वसन्त
२६९ वैदिक बामन गये, जाने पूजा पाठ। गजानना जो चाहते, पूरी होती बात
२७० गण गण गणात बोते बोले,  जय जय गजानना। राणा हैं शेगांव के, योगी गजानना

श्री हरिहरार्पणमस्तु शुभं भवतु

(चौथा अध्याय समाप्त )




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