Gajanan Maharaj

Wednesday, May 27, 2020

Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-18


अध्याय अठारह


पति परायणा बायजा

११७१  श्री गजानना भक्त थी, एक बायजा बाइ। पिता नाम शिवराम था, माता भूलाबाइ ॥
११७२  बचपन में शादी हुई, गौना युवती होय। नाथ नपुंसक बायजा, गर्भाधान न होय ॥
११७३  जननी भूला शोक में, करने लगी विचार। देखो दूल्हा दूसरा, यही एक उपचार ॥
११७४  कुछ दिन तो धीरज रखो, समझाये शिवराम। औषधि ले दामाद तो, शायद होगा काम ॥
११७५  मोहक युवती बायजा, नख शिख सुन्दर पाय। यौवन देखा जेठ की, नीयत बिगड़ी जाय ॥
११७६  भौजाई को छेड़ता, कोशिश करे लुभाय। पति परायणा बायजा, भगवत ध्यान लगाय ॥
११७७  एक बार वह रात को, आय बायजा पास। कामेच्छा की पूर्ती, मांग रहा बदमाश ॥
११७८  मना बायजा ने किया, तुझको है धिक्कार। जेठ तू पिता तुल्य है, क्यों ऐसा कुविचार ॥
११७९  फिर वह माने नहीं, आगे हाथ बढ़ाय। ऐन वक्त बालक उसका, सीढ़ी से गिर जाय ॥
११८०  सीढ़ी से बालक गिरा, शीश चोट आ जाय। गोद उसे ले बायजा, माथे दवा लगाय ॥
११८१  हाल बाल का देख के, जेठ लगा पछताय। पीछा छोड़ा बायजा, आगे नहीं सताय ॥
११८२  शिवाराम फिर बायजा, मुंड़गांव ले जाय। भविष्य उसका जानने, श्री के पास लिवाय ॥
११८३  विनय करे महराज से, रहम नजर सरकार। मिले सन्तती बायजा, खुले भाग्य के द्वार ॥  
११८४  नहीं विधाता ने लिखी, बयजा की सन्तान। पुरुष सभी इसके पिता, यही सत्य तू जान ॥
११८५  खिन्न होय शिवराम तब, वापस घर आ जाय। किन्तु बायजा हो गई, भक्त गजानना साय ॥
११८६  मुंड़गांव का पुण्डलिका, भक्त जाय शेगांव। जाय बायजा साथ में, सन्त गजानन गांव ॥
११८७  संग करे वारी युवा, कानाफूसी होय। दोनों यूवा साथ रहें, यात्रा की युति होय ॥
११८८  भूला माय कलह करे, क्यों पुण्डलिक घर जाय। भक्ती का तो नाम करें, दोनों नैन लड़ायं ॥
११८९  मात पिता ने तय किया, श्री से मिलने जायं। नालायक दोनों भगत, संग उन्हें ले जायं ॥
११९०  श्री जी भूला से कहें, शंका की ना बात। ये दोनों भाई -बहिन, पूर्व जनम से आत ॥
११९१  जन्म बायजा का नहीं, हुआ गृहस्थी काज। इसे कष्ट ना दे कोई, शरण हमारी आज ॥
११९२  सन्तोषी दोनों हुए, भूला वा शिवराम। भगत दोय वारी करें, आगे बिना विराम ॥
 
Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-18
Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-18

पीड़ा भाऊ कवर की, दूर करें श्रीनाथ

११९३  श्रीजी अपने भक्त की, रक्षा कस कर जायं। दोहों में लीला सुनो, कवि सुमन्त कह जाय ॥
११९४  भाऊ राजाराम कवर, डाक्टर खामगांव।  खतरनाक फोड़ा हुआ, ठीक नहीं हो पाय ॥
११९५  दवाइयां भी अनेक ली, शल्य क्रिया हो जाय। कुछ फायदा हुआ नहीं, दर्द सहा ना जाय ॥
११९६  बार -बार बदले करवट, नीन्द न आने पाय। नाम स्मरण करने लगा, श्री लीला दिखलाय ॥
११९७  रात समय चारों तरफ, फैला था अंधियार। किर्र किर्र कीड़ा करे, बोलत हुवा सियार ॥
११९८  तभो टनन टन टन बजी, घण्टी सुनी कवर। टम टम एक सजी हुई, खड़ी द्वार बाहर ॥
११९९  टम टम से नीचे उतर, एक बामना आय। आया हूं शेगांव से, नाम गजा बतलाय ॥
१२००  कवर डाक्टर के लिये, तीरथ उदी लाय। ऊदी फोड़े पर मलो, तीरथ देव पिलाय ॥
१२०१  इतना कह वापस चला, ढूंढे नहीं मिलाय। ऊदी फोड़े पर मली, फोड़ा फूटा जाय ॥
१२०२  बाहर निकला पीप तो, नीन्द कवर आ जाय। कुछी दिनों में डाक्टर, पूर्ण स्वस्थ हो जाय ॥
१२०३  पीड़ा भाऊ कवर की, श्री ने की अस दूर। रात बामना रूप में, आये इतनी दूर ॥

रुकमिनि रमना रुप में, दरस बापुना पाय


१२०४  अषाढ़ महिने में लगा, मेला पंढरपूर। मेला जाने के लिये, रेलें थी भरपूर ॥
१२०५  महाराज भी चल पड़े, दर्शन पंढरिनाथ। आबा पाटिल बापुना, भक्त सभी थे साथ ॥
१२०६  निकले सब शेगांव से, नागझरी आ जाय | गोमा सन्त समाधि के, दर्शन को रुक जाय ॥
१२०७  गोमाजी महराज गुरू, पाटिल वंशज होय। पाटिल सब शेगांव के, आशिष लेते होय ॥
१२०८  भक्तगणों की टोलियां, बजा रही करताल। जय जय राम किशन हरी, गायें दे दे ताल ॥
१२०९  सब सन्तों की पालकियाँ, आई पंढरपूर। पालकियों पर गुलाल की, बौछारें भरपूर ॥
१२१०  कुका पाटिल के बाड़े, श्री गजानना आय। श्री के दर्शन के लिये, भीड़ बड़ी पड़ जाय ॥
१२११  भक्त मंडली चली गई, पंढरि दर्शन पाय। नहान देरी हो गई, बापूना रह जाय ॥ 
१२१२  वाड़े कोई ना मिले, बापूना घबराय। विठ्ठल दर्शन के लिये, दौड़ अकेला जाय ॥
१२१३  मन्दिर जब पहुंचा वहां, गर्दी ऐसी होय। पांव धरे को भी जगह, बापू मिले न कोय ॥
१२१४  निराश बापूना भया, वापस वाड़े आय। सब संगी साथी वहां, उसकी हंसी उड़ाय ॥
१२१५  बापूना ढोंगी भगत, दर्शन क्यों कर होय। यह मेले घूमत रहा, भाव भक्ति ना होय ॥
१२१६  कोई वेदान्ती कहे, कोई कुछ कह जाय। ताने मारे छेड़ करे, बापू को तरसाय ॥
१२१७  देखा उसका हाल जब, श्री किरपा कर जायं। रूकमिनि रमना रूप में,दरस बापूना पाय ॥
१२१८  भगवन्ता ऐसे खड़े, कटि पर रख्खे हाथ। तुलसी माला कण्ठ में, चरण सुहाये साथ ॥
१२१९  सांबरिया दरशन मिले, बापूना सिर नाय। फिर जो ऊपर देखता, महाराज दिख जाय ॥
१२२०  कूका के वाड़े भगत, जैसा दरशन पाय। सन्त अनन्ता एक ही, यही बात समझाय ॥

संकट में नहीं छोड़ो साथ

१२२१  पंढरपुर की और कथा, दासगणू लिख जाय। हैजा फैला गांव में, मौत वहां मंडराय ॥
१२२२  मालि पंढरि एक भगत, बहादुरा से आय। महमारी की दाढ़ में, दुर्दैवी फस जाय ॥
१२२३  बार बार उलटी करे, हाथ पैर सुन्नाय। डरे छूत से हर कोई, पास भी नहीं आय ॥
१२२४  आपा धापी मच रही, यात्री भागे जायं। नदी पार कर दूर तक, सबको छोड़ा जाय ॥
१२२५  कूका वाड़े तड़प रहा, माली कोई न पास। मौत सामने थी खड़ी, जीवन की ना आस ॥
१२२६  वाड़े से भी मंडली,जाने को तैयार। बहादुरा के यातरी, की पूछे ना खैर ॥
१२२७  श्री जी देखा हाल यह, कहते इसे उठाव। यह अपने ही देस का, इसे छोड़ कस जाव ॥
१२२८  फिर माली के पास गये, पकड़ा उसका हाथ। उठ रे अपने देस चल,आय हमारे साथ ॥
१२२९  स्वामी अपना देश क्या, अब क्या अपना गांव। अब तो अन्त समीप है, जाना यम के ठांव ॥
१२३०  उसके सिर पर हाथ रख, श्री जी यूं कह जाय। संकट तेरा टल गया, तू ना अब घबराय ॥
१२३१  माली की उलटी रुकी, तन में ताकत आय। झटपट उठा खड़ा हुआ, संग मंडली जाय ॥
१२३२  श्री संगे भक्तन सभी, पहुंचे नदिया तीर। प्राण बचाये भक्त के, जय जय करती भीर ॥

पद से छुएं श्वान को, वह जीवित हो जाय

१२३३  महाराज की कीरती, फैली चहुं दिस जाय। सन्त महन्ता सुज्ञानी, आवे दरसन पाय ॥
१२३४  एक बार इक बामना, श्री दर्शन को आय। छुआछूत माने बहुत, विचार कट्टर पाय ॥
१२३५  महाराज को देखकर, मन ही मन पछताय। नाहक इतनी दूर तक, पागल पीछे आय ॥
१२३६  यह तो  भ्रष्ट शिरोमणी, कहलाता महराज। मठ में पवित्रता नहीं, अनाचार का राज ॥
१२३७  सन्तापी मन बामना, पानी लेने जाय। मरा हुआ काला कुत्ता, राह पड़ा मिल जाय ॥
१२३८  अब पानी कैसे लाऊं, शिव शिव हे भगवान। मत मेरी मारी गई, आया ऐसे स्थान ॥
१२३९  श्री तब आसन छोड़कर, बामन नियरे आय। बेशक आप करें पूजा, श्वान मृत हुआ नाय ॥
१२४०  क्रोधित बामन चिल्लाया, नहीं शुद्धि का ध्यान। एक प्रहर बीता यहां, पड़ा हुआ मृत श्वान ॥
१२४१  श्रीजी तब आगे बढ़े, श्वान के निकट आय। पद से छुएं श्वान को, वह जीवित हो जाय ॥
१२४२  चमत्कार यह देखकर, बामन शीश झुकाय। श्री के चरणों लोटता, माफी मांगत जाय ॥
१२४३  अपराधी मैं आप तो, पावन ईश समान। कर मेरे सर पर धरो, जग तारक भगवान ॥
१२४४  फिर बामन शंका रहित, पूजा में लग जाय। प्रसाद पाता लौटकर, देश आपने जाय ॥
१२४५  गण गण गणात बोते बोल, जय जय गजानना। राणा है शेगांव के, योगी गजानना ॥

श्री हरिहरार्पणमस्तु ॥ शुभं भवतु ॥

  (अठारहवाँ अध्याय समाप्त )


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