अध्याय अठारह
पति परायणा बायजा
११७१
श्री गजानना भक्त थी, एक बायजा बाइ।
पिता नाम शिवराम था, माता भूलाबाइ ॥
११७२
बचपन में शादी हुई, गौना युवती होय।
नाथ नपुंसक बायजा, गर्भाधान न होय ॥
११७३
जननी भूला शोक में, करने लगी विचार।
देखो दूल्हा दूसरा, यही एक उपचार ॥
११७४
कुछ दिन तो धीरज रखो, समझाये शिवराम।
औषधि ले दामाद तो, शायद होगा काम ॥
११७५
मोहक युवती बायजा, नख शिख सुन्दर
पाय। यौवन देखा जेठ की, नीयत बिगड़ी जाय ॥
११७६
भौजाई को छेड़ता, कोशिश करे लुभाय। पति परायणा
बायजा, भगवत ध्यान लगाय ॥
११७७
एक बार वह रात को, आय बायजा पास।
कामेच्छा की पूर्ती, मांग रहा बदमाश ॥
११७८
मना बायजा ने किया, तुझको है
धिक्कार। जेठ तू पिता तुल्य है, क्यों ऐसा कुविचार ॥
११७९
फिर वह माने नहीं, आगे हाथ बढ़ाय। ऐन
वक्त बालक उसका, सीढ़ी से गिर जाय ॥
११८०
सीढ़ी से बालक गिरा, शीश चोट आ जाय।
गोद उसे ले बायजा, माथे दवा लगाय ॥
११८१
हाल बाल का देख के, जेठ लगा पछताय।
पीछा छोड़ा बायजा, आगे नहीं सताय ॥
११८२
शिवाराम फिर बायजा, मुंड़गांव ले जाय।
भविष्य उसका जानने, श्री के पास लिवाय ॥
११८३
विनय करे महराज से, रहम नजर सरकार।
मिले सन्तती बायजा, खुले भाग्य के द्वार ॥
११८४ नहीं
विधाता ने लिखी, बयजा की सन्तान। पुरुष सभी इसके
पिता, यही सत्य तू जान ॥
११८५
खिन्न होय शिवराम तब, वापस घर आ जाय।
किन्तु बायजा हो गई, भक्त गजानना साय ॥
११८६
मुंड़गांव का पुण्डलिका, भक्त जाय शेगांव।
जाय बायजा साथ में, सन्त गजानन गांव ॥
११८७
संग करे वारी युवा, कानाफूसी होय।
दोनों यूवा साथ रहें, यात्रा की युति होय ॥
११८८
भूला माय कलह करे, क्यों पुण्डलिक
घर जाय। भक्ती का तो नाम करें, दोनों नैन लड़ायं ॥
११८९
मात पिता ने तय किया, श्री से मिलने
जायं। नालायक दोनों भगत, संग उन्हें ले जायं ॥
११९०
श्री जी भूला से कहें, शंका की ना बात।
ये दोनों भाई -बहिन, पूर्व जनम से आत ॥
११९१
जन्म बायजा का नहीं, हुआ गृहस्थी काज।
इसे कष्ट ना दे कोई, शरण हमारी आज ॥
११९२
सन्तोषी दोनों हुए, भूला वा शिवराम।
भगत दोय वारी करें, आगे बिना विराम ॥
पीड़ा भाऊ कवर की,
दूर करें श्रीनाथ
११९३ श्रीजी
अपने भक्त की, रक्षा कस कर जायं। दोहों में लीला
सुनो, कवि सुमन्त कह जाय ॥
११९४ भाऊ
राजाराम कवर, डाक्टर खामगांव। खतरनाक फोड़ा हुआ, ठीक नहीं
हो पाय ॥
११९५ दवाइयां
भी अनेक ली, शल्य क्रिया हो जाय। कुछ फायदा हुआ
नहीं, दर्द सहा ना जाय ॥
११९६ बार
-बार बदले करवट, नीन्द न आने पाय। नाम स्मरण करने
लगा, श्री लीला दिखलाय ॥
११९७ रात
समय चारों तरफ, फैला था अंधियार। किर्र किर्र कीड़ा
करे, बोलत हुवा सियार ॥
११९८ तभो
टनन टन टन बजी, घण्टी सुनी कवर। टम टम एक सजी हुई,
खड़ी द्वार बाहर ॥
११९९ टम
टम से नीचे उतर, एक बामना
आय। आया हूं शेगांव से, नाम गजा बतलाय ॥
१२००
कवर डाक्टर के लिये, तीरथ उदी लाय।
ऊदी फोड़े पर मलो, तीरथ देव पिलाय ॥
१२०१
इतना कह वापस चला, ढूंढे नहीं
मिलाय। ऊदी फोड़े पर मली, फोड़ा फूटा जाय ॥
१२०२
बाहर निकला पीप तो, नीन्द कवर आ जाय।
कुछी दिनों में डाक्टर, पूर्ण स्वस्थ हो जाय ॥
१२०३
पीड़ा भाऊ कवर की, श्री ने की अस दूर। रात बामना
रूप में, आये इतनी दूर ॥
रुकमिनि रमना रुप में,
दरस बापुना पाय
१२०४
अषाढ़ महिने में लगा, मेला पंढरपूर। मेला जाने के लिये, रेलें
थी भरपूर ॥
१२०५
महाराज भी चल पड़े, दर्शन पंढरिनाथ।
आबा पाटिल बापुना, भक्त सभी थे साथ ॥
१२०६
निकले सब शेगांव से, नागझरी आ जाय | गोमा
सन्त समाधि के, दर्शन को रुक जाय ॥
१२०७
गोमाजी महराज गुरू,
पाटिल वंशज होय। पाटिल सब शेगांव के, आशिष
लेते होय ॥
१२०८
भक्तगणों की टोलियां, बजा रही करताल।
जय जय राम किशन हरी, गायें दे दे ताल ॥
१२०९
सब सन्तों की पालकियाँ, आई पंढरपूर। पालकियों पर गुलाल की, बौछारें
भरपूर ॥
१२१०
कुका पाटिल के बाड़े, श्री गजानना आय।
श्री के दर्शन के लिये, भीड़ बड़ी पड़ जाय ॥
१२११
भक्त मंडली चली गई, पंढरि दर्शन पाय। नहान देरी हो गई,
बापूना रह जाय ॥
१२१२
वाड़े कोई ना मिले, बापूना घबराय।
विठ्ठल दर्शन के लिये, दौड़ अकेला जाय ॥
१२१३
मन्दिर जब पहुंचा वहां, गर्दी ऐसी होय।
पांव धरे को भी जगह, बापू मिले न कोय ॥
१२१४
निराश बापूना भया, वापस वाड़े आय। सब
संगी साथी वहां, उसकी हंसी उड़ाय ॥
१२१५
बापूना ढोंगी भगत, दर्शन क्यों कर
होय। यह मेले घूमत रहा, भाव भक्ति ना होय ॥
१२१६
कोई वेदान्ती कहे, कोई कुछ कह जाय।
ताने मारे छेड़ करे, बापू को तरसाय ॥
१२१७
देखा उसका हाल जब, श्री किरपा कर
जायं। रूकमिनि रमना रूप में,दरस बापूना पाय ॥
१२१८
भगवन्ता ऐसे खड़े, कटि पर रख्खे हाथ। तुलसी माला
कण्ठ में, चरण सुहाये साथ ॥
१२१९
सांबरिया दरशन मिले, बापूना सिर नाय।
फिर जो ऊपर देखता, महाराज दिख जाय ॥
१२२०
कूका के वाड़े भगत, जैसा दरशन पाय।
सन्त अनन्ता एक ही, यही बात समझाय ॥
संकट में नहीं छोड़ो साथ
१२२१
पंढरपुर की और कथा, दासगणू लिख जाय।
हैजा फैला गांव में, मौत वहां मंडराय ॥
१२२२
मालि पंढरि एक भगत, बहादुरा से आय।
महमारी की दाढ़ में, दुर्दैवी फस जाय ॥
१२२३
बार बार उलटी करे, हाथ पैर सुन्नाय।
डरे छूत से हर कोई, पास भी नहीं आय ॥
१२२४
आपा धापी मच रही, यात्री भागे जायं। नदी पार कर
दूर तक, सबको छोड़ा जाय ॥
१२२५
कूका वाड़े तड़प रहा, माली कोई न पास।
मौत सामने थी खड़ी, जीवन की ना आस ॥
१२२६
वाड़े से भी मंडली,जाने को तैयार।
बहादुरा के यातरी, की पूछे ना खैर ॥
१२२७
श्री जी देखा हाल यह, कहते इसे उठाव।
यह अपने ही देस का, इसे छोड़ कस जाव ॥
१२२८
फिर माली के पास गये, पकड़ा उसका हाथ।
उठ रे अपने देस चल,आय हमारे साथ ॥
१२२९
स्वामी अपना देश क्या, अब क्या अपना
गांव। अब तो अन्त समीप है, जाना यम के ठांव ॥
१२३०
उसके सिर पर हाथ रख, श्री जी यूं कह
जाय। संकट तेरा टल गया, तू ना अब घबराय ॥
१२३१
माली की उलटी रुकी, तन में ताकत आय।
झटपट उठा खड़ा हुआ, संग मंडली जाय ॥
१२३२ श्री
संगे भक्तन सभी, पहुंचे नदिया तीर। प्राण बचाये
भक्त के, जय जय करती भीर ॥
पद से छुएं श्वान को,
वह जीवित हो जाय
१२३३
महाराज की कीरती, फैली चहुं दिस जाय। सन्त
महन्ता सुज्ञानी, आवे दरसन पाय ॥
१२३४ एक
बार इक बामना, श्री दर्शन को आय। छुआछूत माने
बहुत, विचार कट्टर पाय ॥
१२३५
महाराज को देखकर, मन ही मन पछताय। नाहक इतनी
दूर तक, पागल पीछे आय ॥
१२३६
यह तो भ्रष्ट शिरोमणी,
कहलाता महराज। मठ में पवित्रता नहीं, अनाचार
का राज ॥
१२३७ सन्तापी मन बामना, पानी लेने
जाय। मरा हुआ काला कुत्ता, राह पड़ा मिल जाय ॥
१२३८
अब पानी कैसे लाऊं, शिव शिव हे
भगवान। मत मेरी मारी गई, आया ऐसे स्थान ॥
१२३९
श्री तब आसन छोड़कर,
बामन नियरे आय। बेशक आप करें पूजा, श्वान मृत
हुआ नाय ॥
१२४०
क्रोधित बामन चिल्लाया, नहीं शुद्धि का ध्यान। एक प्रहर बीता
यहां, पड़ा हुआ मृत श्वान ॥
१२४१
श्रीजी तब आगे बढ़े, श्वान के निकट
आय। पद से छुएं श्वान को, वह जीवित हो जाय ॥
१२४२
चमत्कार यह देखकर, बामन शीश झुकाय।
श्री के चरणों लोटता, माफी मांगत जाय ॥
१२४३ अपराधी
मैं आप तो, पावन ईश समान। कर मेरे सर पर धरो,
जग तारक भगवान ॥
१२४४
फिर बामन शंका रहित, पूजा में लग जाय।
प्रसाद पाता लौटकर, देश आपने जाय ॥
१२४५
गण गण गणात बोते बोल, जय जय गजानना।
राणा है शेगांव के, योगी गजानना ॥
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