Gajanan Maharaj

Wednesday, May 27, 2020

Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-12


अध्याय बारह


मन्दिर हो श्रीराम का इच्छा बच्चुलाल


७९७ बच्चुलाल इक धनपति, वास अकोला होय। श्री गजानन सन्त पर, असीम श्रद्धा होय
७९८ एक दिवस श्री गजानना, उसके घर जाय। घर बाहर के ओटले, पर आकर जम जाय
७९९ बच्चुलाल आनन्द से, विनय करें महाराज। सद्गुरु की पूजा करु, देवें अनुमती आज
८०० महाराज बोले नहीं, गर्दन देय हिलाय। मौन संमती पायके, अगरवाल हर्षाय
८०१ विधि षोडश उपचारसे, पूजा की प्रारम्भ। उबटन अंग लगाय के, मंगल स्नान आरम्भ
८०२ पीत वस्त्र परिधान पर, कश्मीरी दोशाल। श्री गजानना शीश पर, रेशम का रूमाल
८०३ गले स्वर्णमाला डाली, रत्न जड़ित था हार। दसों उंगलियों हीरे की, अंगूठी दे डार
८०४ नैबद था मिष्ठान का, जलेबियां पेड़े। पानदान में सज गये, बरक लगे बीड़े
८०५ अष्टगंध इत्तर अगर, अंग सुवास लगाय। फूलोंकी वर्षा करें, गुलाबजल छिड़काय
८०६ दस सहस्र की दक्षिणा, रखी स्वर्ण के थाल। श्रीफल सह अर्पण करें, श्री को बच्चुलाल
८०७ हाथ जोड़ विनती करे, गुरु पूजन के बाद। मन में ऐसी भावना, देवें आशीरवाद
८०८ आप विराजे हैं जहाँ, मन्दिर हो श्रीराम। श्री के आशिरवाद से, हो जाये यह काम
८०९ पूर्ण करें संकल्प तेरा, जग के दाता राम। पंचायत श्री राम की, बैठेगी अभिराम
८१० पर तूने यह आज जो, किया तमाशा होय। घोड़ा जस बारात का, मुझे सजाया होय
८११ आभूषण ये स्वर्ण के, हीरे जवाहिरात। मेरे ना कुछ कामके, मेरे लिये अजात
८१२ या निज वैभव मान का, किया प्रदर्शन होय। मैं तो साधु दिगम्बरा, इस धन का क्या होय
८१३ जगत सेठ वह विठ्ठला, है मेरा यजमान। उसके पास कमी नहीं, क्या वैभव क्या मान
८१४ ऐसा कह महाराज दो, पेड़े मुंह में डार। फेंक दिये चारो तरफ, भूषण वस्त्र उतार
८१५ बाद वहां से चल दिये, भक्त दुखी हो जाय। गजानना की बातका, मर्म समझ ना पाय
८१६ नश्वर तन को सजाय के, रे मन मत इतराय। तीन लोक की सम्पदा, प्रभु चरणोंमें पाय

पत्ते फूटे ठूँठ से हरा हो गया आम


८१७ मठवासी शेगांव के, एक शिष्य की बात। फटी हुई धोती पहन, पीताम्बर कहलात
८१८ सन्त कहे निज भक्त से, रे पीताम्बर पहन चीथड़े घूमता, मठ में इधर उधर
८१९ देखें नर नारी तुझे, ढँक ले अंग नगन। स्वर्णलता के तन नहीं, पीतल का भी नगन
८२० पहन दुपट्टा ले मेरा, इज्जत अपनी ढांप। कोई गर कुछ भी कहे, ना सुनना आलाप
८२१ पीताम्बर को प्यार से, सदगुरु वस्र उढाय। मठवासी कुछ भक्त यह, देखत मना कुढाय
८२२ आरोपित करने लगे, मन में मत्सर शूल। श्री वस्रों को ओढ़ लिया, पीताम्बर की भूल
८२३ पीताम्बर नाही किया, सदगुरु का अपमान। गुरु आज्ञा को मानकर, रक्खा गुरु का मान
८२४ भक्तों में इस बात पर, हो गई तनातनी। समाधान ऐसा किया, महाराज ज्ञानी
८२५ पीताम्बर तुझ पर मेरा, प्यार सदा भरपूर। बाल सयाना होय तो, माय गोद से दूर
८२६ तू अब ज्ञानी हो गया, मठ में रहना नाय। भक्तों के उद्धार हित, भ्रमण करो जग माय
८२७ गुरु आज्ञा पालन करै, सदगुरु का चेला।  सजल नयन पीताम्बरा, मठ को छोड़ चला
८२८ गजानना गुरुदेव का, मन में रटता नाम। शाम रुका वन में जहाँ, निकट वृक्ष था आम
८२९ भोर भई सूरज उगा, चिउंटे लगे सताय। आम वृक्ष पर जा चढ़ा, टहनी पर बैठाय
८३० चिउंटे फिर काटन लगे, पीतम्बर घबराय। इस डाली उस डाल चढ़े, चिउंटे भी जाय
८३१ टहनी टहनी फान्दता, इत उत चढ़ उतराय। ठौर निरापद पर कहीं, पीताम्बर ना पाय
८३२ पास गांव कोंडोलि से, आये कुछ गोपाल। कौतुक से देखने लगे, मानुस फिरै डगाल
८३३ पाय सूचना ग्वाल से, वहाँ जुट गई भीर। देखें  उसकी हरकतें, समझे पागल पीर
८३४ पूछन लागे क्यों यहाँ, कौन कहाँ से आय। आया हूं शेगांव से, शिष्य गजानन साय
८३५ उन के ही आदेश से, करूं भ्रमण मैं भाय।  रात यहा विश्राम किया, चिउंटे बहुत सताय
८३६ गजानना का नाम लिया, वे तो सन्त महान। चेला दिखता पागला, कोई सच ना मान
८३७ सच में तू यदि शिष्य है, श्री गजानन महाराज। चमत्कार तू भी दिखा, जैसे गुरु महराज
८३८ यहीं पास सूखा हुआ, एक आम तरु होइ। यदि तू शिष्य गजानना, हरा भरा कर सोइ
८३९ सुनते ही पीताम्बरा, घबराया घिघियाय। ऐसे नहीं सताव मुझे, छोड़ो मुझको भाय
८४० झूठ नहीं मैं बोलता, गुरु हैं गजानना। पर मैं पत्थर चकमका, हीरा गजानना
८४१ चमत्कार ना कर सकूं, मेरे बस की नाय। सिद्ध योग जानूं नहीं, ठूंठा कस हरिताय
८४२ लोग कहें यदि शिष्य तू, गुरुजी करें सहाय। कर आव्हान गजानना, वे दौड़ेंगे आय
८४३ इत कूवा उत खड्ड की, परिस्थिती जाय। पीताम्बर अब क्या करे, सूझे नहीं उपाय
८४४ सूखे आम निकट खड़े, कोंडोली नर नार। मारेंगे यदि नहीं हुआ, पेड़ हरा कचनार
८४५ हे स्वामी श्री गजानना, रक्षा करियो नाथ | मेरे कारण लग रहा, दोष आप के माथ
८४६ भिक्षा मांगूँ आपसे, दया करो महराज। आम्र ठूंठ को हरा करो, मेरी रखियो लाज
८४७ सन्त और भगवान में, अन्तर नाही होय। मेरे भगवन आप ही, आपहि समरथ होय
८४८ मैं धागा हूं हार का, पुष्प आप गुरुदेव। चढूं अकिंचन आप के, साथ शीश शिवदेव
८४९ अन्त मेरा देखिये, शीघ्र पधारो साय। सूख गये इस पेड़ में, हरित पत्तियां लायं
८५० भक्तों मेरे साथ लो, श्री सदगुरु का नाम। जय गजानना श्री हरी, हरा-हरा हो आम
८५१ जय गजानन गजानना, घोष हो रहा नाम। पत्ते निकले ठूंठ से, हरा हो गया आम
८५२ हरा हो गया आम तरू, अचरज सबको होय। देखें पतियां तोड़ के, शंका निरसन होय
८५३ महा सन्त श्री गजानना, अनुभूति हो जाय। चेले को सम्मान से, कोंडोली ले जाय
८५४ कोंडोली वाशिम जिला, आज भी हरा आम। पीताम्बर महराज का, वहाँ बड़ा हैं नाम
Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-12
Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay - 12

 फूट पड़ी इस गांव


८५५ भक्तों अब आगे सुनो, कथा गजानन सन्त। मठ में बैठे एक दिन, कुछ अनमन थे कन्त
८५६ शिष्यों से कहने लगे, अब रहूँ शेगांव। यहाँ जगह ना चाहिए, फूट पड़ी इस गाँव
८५७ भक्त मंडली चिन्तातुर, श्री से विनय करे। हमें छोड़कर आप श्री, गमन कहीं करे
८५८ अगर मिले ऐसी जगह, मालिक कोइ होय। तभी रहूं शेगांव में, या फिर जाना होय
८५९ उलझन में सब भक्त गण, कैसा करें उपाय। बिन मालिक की भूमि तो, सरकारी ही पाय
८६० क्यों दे धरती सन्त को, अंगरेजी सरकार। अशक्य पर भूदान को, भक्त सभी तैयार
८६१ महाराज कहने लगे, भक्तों तुम अज्ञान। सबै भूमि गोपाल की, यह ना पाए जान
८६२ हरि पाटिल को साथ लो, और काम लग जाव। यत्न करो तो यश मिले, मन में शक ना लाव
८६३ हरि पाटिल सरकार को, अरजी दई लगाय। एकड़ एक जमीन करी, साहब जी दे जाय
८६४ महाराज के भक्तगण, चन्दा लेकर आय। नवीन मठ का इस तरह, काम शुरू हो जाय
८६५ गण गण गणात बोते बोल, जय जय गजनना। राणा हैं शेगांव के, योगी गजानना

श्री हरिहरार्पणमस्तु शुभं भवतु

 (बारहवाँ अध्याय समाप्त )


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