अध्याय ग्यारह
पूर्व जन्म का बैर चुके भास्कर करे प्रयाण
७२२ दास नवमि अगले बरस, उत्सव बालापूर। गजानना भी आय रहे, संग शिष्य भरपूर ॥
७२३ भास्कर पाटिल भी वहां, कुभाग लेकर आय। पागल कुत्ता आय के, काट अचानक खाय ॥
७२४ लोग सभी घबरा गये, डाक्टर बैद बुलाय। पाटिल उनको रोक दे,
बैद जरूरी नाय ॥
७२५ मेरे डाक्टर गजानना, मुझे वहां ले जायं। बालाभाऊ फिर उसे, श्री सम्मुख ले जाय ॥
७२६ पागल कुत्ते ने काटा, इसको आप बचायं। महाराज घटना सुनी, और कहे मुसकाय ॥
७२७ कर्ज बैर हत्या तीनों,मांगे बदला भाय। पाटिल उम्र हुई पूरी, अब तू ऊपर जाय ॥
७२८ करूं प्राणरक्षा तेरी, जीवन मिले उधार। शीघ्र बोल अवसर तुझे, तेरा काय विचार ॥
७२९ मैं बालक अज्ञान हूँ, आप ही मेरी माय। मेरे हित में जो वही,आपन के मन भाय ॥
७३० फिर कोई कहने लगा, भक्तों में से एक। गुरू बचा लो भास्कर, भक्त आप का नेक ॥
७३१ जनम मरण कोई नहीं, है यह भ्रम की बात। कर्म भोग भोगे बिना, जीव न मुक्ती पात ॥
७३२ गत जनमों में कर्म किये, इस जीवन भुगताय। इस जनम के कर्म कटें, अगला जनम लिवाय ॥
७३३ इसी तरह से जीव का, चलता रहता फेर। कर्म कटे तो ही मिटे, जनम जनम का फेर ॥
७३४ भास्कर के सब कर्म कटे, खड़ा मोक्ष के द्वार। उसकी राह न रोकियो, जाये भव के पार ॥
७३५ पूर्व जन्म बैरी रहे, भास्कर के जो श्वान। आज यहाँ काटे उसे, पूरा करते दाम ॥
७३६ कुत्ते से फिर द्वेष रखे, मन में यदि पाटील। फिर पाये अगला जनम,
होगा क्या हासिल ॥
७३७ फिर भी मैं इतना करूं, जीवन दूँ दो माह। यह जो आयु बच रही, निष्कण्टक हो राह ॥
७३८ सन्त गजानन की सेवा, जस भास्कर ने कीन। मीठा फल मुक्ती मिले, गुरु सेवा में लीन ॥
७३९ महाराज मण्डली सहित, लौट आये शेगांव। बालापुर की बात को,भास्कर सबै बताव ॥
७४० विनती वह सब से करे, स्मारक एक बनाव। संत गजानन की कीरत, साक्षी हो शेगांव ॥
७४१ ज्ञानेश्वर, स्वामी समर्थ, तुका अमर हो जाय। देहु सजनगढ़ आलन्दी, स्मारक दिये बनाय ॥
७४२ ऐसा ही स्मारक बने, श्री गजानन महराज।
भास्कर ने सौगंध दी, भक्तों को इस काज ॥
७४३ भक्तों ने स्वीकार किया,भास्कर का प्रस्ताव। भास्कर मन आनन्द भयो,चित सुख शांती पाव ॥
७४४ माघ वद्य तेरस तिथी, श्री कहते भास्कर। शिवरात्री त्रिम्बक चलें, गोदावरी तट पर॥
७४५ ब्रम्हागिरी पर्वत वहां, जड़ी बूटियां होय। श्वान दंश की औषधि, वहां जरूरी होय ॥
७४६ औषधि मुझे न चाहिये, मेरी औषधि आप। जीवन अब दो माह का, साथ यहीं मैं आप ॥
७४७ यहां आपके शेगांव में, तीरथ यही महान। चरण अपकें मैं करूं, गोदावरी महान ॥
७४८ गजानना मुस्काय कर, महिमा तीर्थ बताय। पीताम्बर बालाभाऊ, संग उसे ले जाय ॥
७४९ शिवरात्री पर स्नान किया, कुशावर्त के घाट। शिव दर्शन के बाद में, दर्शन गहनी नाथ ॥
७५० फिर पहुचे नासिक सभी, मन्दिर काला राम। बैठे मन्दिर सामने, पीपल तरु की छाम ॥
७५१ गोपलदास महन्त का, यहां ठिकाना होय। हार नारियल शर्करा, श्री का स्वागत होय ॥
७५२ दोनों सन्त महन्त मिले, भक्त प्रसादी पाय। फिर धुमाल के घर गये, दर्शन भीड़ जमाय ॥
७५३ लौटे जब शेगांव तो, झ्यामसिंग आ जाय।
महाराज अड़गाव चलो, आमंत्रण दे जाय ॥
७५४ रामनवमी शेगावमें, फिर पहुंचे अड़गाव। चमत्कार श्री गजानना, बहुत किये अड़गाव ॥
७५५ एक दिवस अंगार पर, भास्कर को लोटाय। उसकी छाती बैठकर, करते खूब पिटाय ॥
७५६ लोग देखते दूरसे, कोई निकट न आय। बालाभाऊ विनय करे, बस अब मारो नाय ॥
७५७ भास्कर भाऊ से कहे, तू मत रोके भाय। मेरे तो भगवन यही, करें उन्हें जो भाय ॥
७५८ थप्पड़ मारे गजानना, अंग गुदगुदी होय। श्री गजानना सन्त की, मुझे प्रचीती होय ॥
७५९ बाला भाऊ से कहे, श्री जी फिर समझाय। भास्कर का ताडन किया, उसका अर्थ बताय ॥
७६० भास्कर चुगली कर तुझे, छतरी से पिटवाय। क्रियमाण उस कर्म का, केवल यही उपाय ॥
७६१ दो दिन भास्कर के बचे, कर्म रहे न शेष। उसको अब मुक्ती मिले, और ना कुछ उद्देश ॥
७६२ दिन प्रयाण का आय जब,
भास्कर को समझाय। पद्मासन में बैठकर, श्रीहरि में चित लाय ॥
७६३ करो भजन सब भक्तगण, नारायण विठ्ठला। आज तुम्हारा भास्कर, स्वर्गलोक को चला ॥
७६४ त्रिकुटी ध्यान लगायकर, भास्कर अन्तर्लीन। पूजा करते भक्तगण, श्री देखे तल्लीन ॥
७६५ एक प्रहर तक भजन हुआ, समय दोपहर आय।'हर-हर' जब महाराज कहें, भास्कर प्राण तजाय ॥
Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-11 |
कागा यहाँ न आइयो आज्ञा दे महाराज
७६६ महाराज आदेश दें, एक विमान सजाय।
उसमें शरीर रख उसे, दरकेशर ले जाय ॥
७६७ समाधि भास्कर की बनी, वृक्ष वहां भरपूर | उत्तर में अड़गांव से, एक कोस है दूर ॥
७६८ अन्नदान होने लगा, भण्डारा कहलाय। साधू भोजन बैठते, कागा बहु मण्डराय ॥
७६९ कांव कांव कागा करे, पत्तल दोन उठाय। भोज हेतु बैठे उन पर, विष्ठा भी कर जाय ॥
७७० तंग हुए जब लोग तो, उनको लगे भगाय। गजानना ने मना किया, कारण भी बतलाय ॥
७७१ प्राण तजे जब शरीर तो, अंतरिक्ष भटकाय। पिंडदान दसवें दिवस, मोक्ष तभी वह पाय ॥
७७२ भास्कर की तो आतमा, सीधे स्वर्ग ही जाय। इसीलिये कौवे वहां, अपना रोष जताय ॥
७७३ भास्कर तो बैकुण्ठ को, सीधे पहुँचे जाय। पिण्ड स्पर्श तो ना मिला, प्रसाद तो मिल जाय ॥
७७४ श्री फिर कौओं से कहे, आज प्रसादी खाव। कल से इधर न आइयो, वर्जित है यह ठाव ॥
७७५ अगर बात यह ना सुनी, होगी मेरी हेठि। श्री जी की यह बात तो, सबके हिरदय पैठि ॥
७७६ पर कुछ ऐसे भी रहे, कुत्सित हँसी उड़ाय। गजानना की बात की, खिल्ली रहे उड़ाय ॥
७७७ किन्तु रह गये दंग सभी, थी अचरज की बात। बारह वर्षो तक वहाँ, कौआ एक न आत ॥
७७८ दिन चौदह जब बीत गये, गमन भास्कर बाद। श्री गजानना लौट गये, शिष्य सभी संगात ॥
कुएं की बारूद में गणू श्रमिक फंस जाय
७७९ और एक लीला सुनो, दास गणू बतलाय। था अकाल का साल सो, कूप सुरंग लगाय ॥
७८० ग्यारह फुट गहराय पर, काला पत्थर आय । चार छेद बारूद भर, पुंगली अगन लगाय ॥
७८१ पुंगली नीचे जाय नहीं, बीच राह अटकाय। आग छुए बारूद नहीं, मिस्त्री मन चिन्ताय ॥
७८२ गणू श्रमिक से वह कहे, तू नीचे उतराय। पुंगली मध्य रखी अगन, को नीचे सरकाय ॥
७८३ नीचे फिर उतरा गणू, पुंगली को सरकाय। वह सीधे नीचे गई, बारूद से टकराय ॥
७८४ दूजी जब सरकान लगा, सुरंग में विस्फोट। कान फाड़ आवाज से, उसके दिल पर चोट ॥
७८५ घबराया मन में गणू, स्मरण करे महराज। त्राहिमाम रक्षा करो, दौड़ आव महराज ॥
७८६ धुआं छा गया दूसरी, सुरंग फूटी जाय।
गणू श्रमिक के हाथ तभी, इक कपार लग जाय ॥
७८७ जा बैठा उस कपार में, उड़ने लगी सुरंग। पाथर भाटे ढेलों की, खूब मची हुड़दंग ॥
७८८ ऊपर जो भी लोग थे, झांकन लागे कूप। गणू कहाँ गायब भया, छिन्न -भिन्न क्या रूप ॥
७८९ जाय कूप अन्दर कोई, मिल जाये गर लाश। मिस्त्री ने आवाज दी, करते सभी तलाश ॥
७९० गजानना आशीष से, मैं जीवित साबूत। कपार पर पत्थर पड़ा, मुझे निकालो तूर्त ॥
७९१ शब्द गणू के जब सुने, हर्षित सब हो जाय। कपार से पत्थर हटा, बाहर निकाल लायं ॥
७९२ आया बाहर तो गणू, दौड़ा दौड़ा जाय। श्री जी मठ पहुँच कर, चरणों में गिर जाय ॥
७९३ श्रीजी कहें गणू वहां, कितने भाट उड़ाय। कपार द्वारे भाट ने, तेरे प्राण बचाय ॥
७९४ गणू कहे महराजजी, लीला आपकि होय। पत्थर कपार पर रखा, सद्गुरु आपहि होय ॥
७९५ कूएँ में बारूद ने, मार दिया था मोय। प्राण बचाये सद्गुरु, चरण पडूं मैं तोय ॥
७९६ गण गण गणात बोते बोल, जय जय गजानना। राणा हैं शेगांव के, योगी गजानना ॥
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