Gajanan Maharaj

Wednesday, May 27, 2020

Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-11

अध्याय ग्यारह


पूर्व जन्म का बैर चुके भास्कर करे प्रयाण


७२२ दास नवमि अगले बरस, उत्सव बालापूर गजानना भी आय रहे, संग शिष्य भरपूर
७२३ भास्कर पाटिल भी वहां, कुभाग लेकर आय। पागल कुत्ता आय के, काट अचानक खाय
७२४ लोग सभी घबरा गये, डाक्टर बैद बुलाय। पाटिल उनको रोक दे, बैद जरूरी नाय
७२५ मेरे डाक्टर गजानना, मुझे वहां ले जायं। बालाभाऊ फिर उसे, श्री सम्मुख ले जाय
७२६ पागल कुत्ते ने काटा, इसको आप बचायं। महाराज घटना सुनी, और कहे मुसकाय
७२७ कर्ज बैर हत्या तीनों,मांगे बदला भाय। पाटिल उम्र हुई पूरी, अब तू ऊपर जाय  
७२८ करूं प्राणरक्षा तेरी, जीवन मिले उधार। शीघ्र बोल अवसर तुझे, तेरा काय विचार
७२९ मैं बालक अज्ञान हूँ, आप ही मेरी माय। मेरे हित में जो वही,आपन के मन भाय
७३० फिर कोई कहने लगा, भक्तों में से एक। गुरू बचा लो भास्कर, भक्त आप का नेक
७३१ जनम मरण कोई नहीं, है यह भ्र की बात। कर्म भोग भोगे बिना, जीव मुक्ती पात
७३२ गत जनमों में कर्म किये, इस जीवन भुगताय। इस जनम के कर्म कटें, अगला जनम लिवाय
७३३ इसी तरह से जीव का, चलता रहता फेर। कर्म कटे तो ही मिटे, जनम जनम का फेर
७३४ भास्कर के सब कर्म कटे, खड़ा मोक्ष के द्वार। उसकी राह रोकियो, जाये भव के पार
७३५ पूर्व जन्म बैरी रहे, भास्कर के जो श्वान। आज यहाँ काटे उसे, पूरा करते दाम
७३६ कुत्ते से फिर द्वेष रखे, मन में यदि पाटील फिर पाये अगला जनम, होगा क्या हासिल
७३७ फिर भी मैं इतना करूं, जीवन दूँ दो माह। यह जो आयु बच रही, निष्कण्टक हो राह
७३८ सन्त गजानन की सेवा, जस भास्कर ने कीन। मीठा फल मुक्ती मिले, गुरु सेवा में लीन
७३९ महाराज मण्डली सहित, लौट आये शेगांव। बालापुर की बात को,भास्कर सबै बताव
७४० विनती वह सब से करे, स्मारक एक बनाव। संत गजानन की कीरत, साक्षी हो शेगांव
७४१ ज्ञानेश्वर, स्वामी समर्थ, तुका अमर हो जाय। देहु सजनगढ़ आलन्दी, स्मारक दिये बनाय
७४२ ऐसा ही स्मारक बने, श्री गजानन महराज।  भास्कर ने सौगंध दी, भक्तों को इस काज
७४३ भक्तों ने स्वीकार किया,भास्कर का प्रस्ताव। भास्कर मन आनन्द भयो,चित सुख शांती पाव
७४४ माघ वद्य तेरस तिथी, श्री कहते भास्कर। शिवरात्री त्रिम्बक चलें, गोदावरी तट पर॥
७४५ ब्रम्हागिरी पर्वत वहां, जड़ी बूटियां होय। श्वान दंश की औषधि, वहां जरूरी होय
७४६ औषधि मुझे चाहिये, मेरी औषधि आप। जीवन अब दो माह का, साथ यहीं मैं आप
७४७ यहां आपके शेगांव में, तीरथ यही महान। चरण अपकें मैं करूं, गोदावरी महान
७४८ गजानना मुस्काय कर, महिमा तीर्थ बताय। पीताम्बर बालाभाऊ, संग उसे ले जाय
७४९ शिवरात्री पर स्नान किया, कुशावर्त के घाट। शिव दर्शन के बाद में, दर्शन गहनी नाथ
७५० फिर पहुचे नासिक सभी, मन्दिर काला राम। बैठे मन्दिर सामने, पीपल तरु की छाम
७५१ गोपलदास महन्त का, यहां ठिकाना होय। हार नारियल शर्करा, श्री का स्वागत होय
७५२ दोनों सन्त महन्त मिले, भक्त प्रसादी पाय। फिर धुमाल के घर गये, दर्शन भीड़ जमाय
७५३ लौटे जब शेगांव तो, झ्यामसिंग जाय।  महाराज अड़गाव चलो, आमंत्रण दे जाय
७५४ रामनवमी शेगावमें, फिर पहुंचे अड़गाव। चमत्कार श्री गजानना, बहुत किये अड़गाव
७५५ एक दिवस अंगार पर, भास्कर को लोटाय। उसकी छाती बैठकर, करते खूब पिटाय
७५६ लोग देखते दूरसे, कोई निकट आय। बालाभाऊ विनय करे, बस अब मारो नाय
७५७ भास्कर भाऊ से कहे, तू मत रोके भाय। मेरे तो भगवन यही, करें उन्हें जो भाय
७५८ थप्पड़ मारे गजानना, अंग गुदगुदी होय। श्री गजानना सन्त की, मुझे प्रचीती होय
७५९ बाला भाऊ से कहे, श्री जी फिर समझाय। भास्कर का ताडन किया, उसका अर्थ बताय
७६० भास्कर चुगली कर तुझे, छतरी से पिटवाय। क्रियमाण उस कर्म का, केवल यही उपाय
७६१ दो दिन भास्कर के बचे, कर्म रहे शेष। उसको अब मुक्ती मिले, और ना कुछ उद्देश
७६२ दिन प्रयाण का आय जब, भास्कर को समझाय। पद्मासन में बैठकर, श्रीहरि में चित लाय
७६३ करो भजन सब भक्तगण, नारायण विठ्ठला। आज तुम्हारा भास्कर, स्वर्गलोक को चला
७६४ त्रिकुटी ध्यान लगायकर, भास्कर अन्तर्लीन पूजा करते भक्तगण, श्री देखे तल्लीन
७६५ एक प्रहर तक भजन हुआ, समय दोपहर आय।'हर-हर' जब महाराज कहें, भास्कर प्राण तजाय
Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-11
Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-11

कागा यहाँ आइयो आज्ञा दे महाराज

७६६ महाराज आदेश दें, एक विमान सजाय।  उसमें शरीर रख उसे, दरकेशर ले जाय
७६७ समाधि भास्कर की बनी, वृक्ष वहां भरपूर | उत्तर में अड़गांव से, एक कोस है दूर
७६८ अन्नदान होने लगा, भण्डारा कहलाय। साधू भोजन बैठते, कागा बहु मण्डराय
७६९ कांव कांव कागा करे, पत्तल दोन उठाय। भोज हेतु बैठे उन पर, विष्ठा भी कर जाय
७७० तंग हुए जब लोग तो, उनको लगे भगाय गजानना ने मना किया, कारण भी बतलाय
७७१ प्राण तजे जब शरीर तो, अंतरिक्ष भटकाय। पिंडदान दसवें दिवस, मोक्ष तभी वह पाय
७७२ भास्कर की तो आतमा, सीधे स्वर्ग ही जाय। इसीलिये कौवे वहां, अपना रोष जताय  
७७३ भास्कर तो बैकुण्ठ को, सीधे पहुँचे जाय। पिण्ड स्पर्श तो ना मिला, प्रसाद तो मिल जाय
७७४ श्री फिर कौओं से कहे, आज प्रसादी खाव कल से इधर आइयो, वर्जित है यह ठाव
७७५ अगर बात यह ना सुनी, होगी मेरी हेठि। श्री जी की यह बात तो, सबके हिरदय पैठि
७७६ पर कुछ ऐसे भी रहे, कुत्सि हँसी उड़ाय। गजानना की बात की, खिल्ली रहे उड़ाय
७७७ किन्तु रह गये दंग सभी, थी अचरज की बात। बारह वर्षो तक वहाँ, कौआ एक आत
७७८ दिन चौदह जब बीत गये, गमन भास्कर बाद। श्री गजानना लौट गये, शिष्य सभी संगात

कुएं की बारूद में गणू श्रमिक फंस जाय

७७९ और एक लीला सुनो, दास गणू बतलाय। था अकाल का साल सो, कूप सुरंग लगाय
७८० ग्यारह फुट गहराय पर, काला पत्थर आय चार छेद बारूद भर, पुंगली अगन लगाय
७८१ पुंगली नीचे जाय नहीं, बीच राह अटकाय। आग छुए बारूद नहीं, मिस्त्री मन चिन्ताय
७८२ गणू श्रमिक से वह कहे, तू नीचे उतराय। पुंगली मध्य रखी अगन, को नीचे सरकाय
७८३ नीचे फिर उतरा गणू, पुंगली को सरकाय। वह सीधे नीचे गई, बारूद से टकराय  
७८४ दूजी जब सरकान लगा, सुरंग में विस्फोट। कान फाड़ आवाज से, उसके दिल पर चोट
७८५ घबराया मन में गणू, स्मरण करे महराज। त्राहिमाम रक्षा करो, दौड़ आव महराज
७८६ धुआं छा गया दूसरी, सुरंग फूटी जाय।  गणू श्रमिक के हाथ तभी, इक कपार लग जाय
७८७ जा बैठा उस कपार में, उड़ने लगी सुरंग। पाथर भाटे ढेलों की, खूब मची हुड़दंग
७८८ ऊपर जो भी लोग थे, झांकन लागे कूप। गणू कहाँ गायब भया, छिन्न -भिन्न क्या रूप
७८९ जाय कूप अन्दर कोई, मिल जाये गर लाश। मिस्त्री ने आवाज दी, करते सभी तलाश
७९० गजानना आशीष से, मैं जीवित साबूत। कपार पर पत्थर पड़ा, मुझे निकालो तूर्त
७९१ शब्द गणू के जब सुने, हर्षित सब हो जाय। कपार से पत्थर हटा, बाहर निकाल लायं
७९२ आया बाहर तो गणू, दौड़ा दौड़ा जाय। श्री जी मठ पहुँच कर, चरणों में गिर जाय
७९३ श्रीजी कहें गणू वहां, कितने भाट उड़ाय। कपार द्वारे भाट ने, तेरे प्राण बचाय
७९४ गणू कहे महराजजी, लीला आपकि होय। पत्थर कपार पर रखा, सद्गुरु आपहि होय
७९५ कूएँ में बारूद ने, मार दिया था मोय। प्राण बचाये सद्गुरु, चरण पडूं मैं तोय
७९६ गण गण गणात बोते बोल, जय जय गजानना। राणा हैं शेगांव के, योगी गजानना

श्री हरिहरार्पणमस्तु शुभं भवतु

(ग्यारहवाँ अध्याय समाप्त )


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