Gajanan Maharaj

Wednesday, May 27, 2020

Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-20


अध्याय बीस


दिव्य ज्योत श्री गजानना अब भी प्रकाशमान


१३६५ समाधि श्री की हो गई, श्री विहीन शेगांव। बहार जैसे चली गई, छोड़ गयी शेगांव
१३६६ दिव्य ज्योत श्री गजानना, अब भी प्रकाशमान।श्रद्धा से सुमिरन करे, दर्शन दें  श्रीमान
१३६७ इसी विषय में एक कथा, दास गणू बतलाय। गणपत कोठाडे भगत, नियमित दर्शन जाय
१३६८ निकट समाधि बैठ कर, स्तवन पाठ कर जाय। बामन भोज कराय दूँ, ऐसा मन में आय
१३६९ पत्नी आपत्ति करे, विजयादशमी आय। कपड़े बच्चों के करो, काहे भोज कराय
१३७० सपने में श्री आय के, उसको दे समझाय। मोह नहीं धन से करे, भोज नहीं रुकवाय
१३७१ पुण्य कार्य बामन भोजन, खर्च व्यर्थ ना जाय। बीज खेत डाला अगर, फसल बड़ी मिल जाय
१३७२ सपना आया जो वही, पति को दिया बताय। पूजन बामन भोज करा, गणपत ख़ुशी मनाय

लक्ष्मण जांजल दर्श दिये

१३७३ लछमन हरि जांजला हुआ, ऐसा ही कुछ भान। मुम्बई टेशन पर मिले, संन्यासी अनजान
१३७४ अमरावति घटना घटी, वैसी दई बताय। दूर किया अवसाद मन, फिर गायब हो जाय
 
Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-20
Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-20

प्राण बचे माधव जोशी नदिया आये पूर

१३७५ आफिसर सरकार का, माधव जोशी नाम। गांव कलम्ब कसूर मे, पैमाइश का काम॥
१३७६ सर्वे करते शाम हुई, फिर विचार हो जाय। दर्शन कर शेगांव में, रात गुजारी जाय
१३७७ कुतुबुद्दीन सिपाही था, जोते गाड़ी बैल। दोनों गाड़ी बैठ गये, हाँक दिये फिर बैल
१३७८ रस्ते में शेगांव के, नदिया आई पूर। क़ुतुब सिपाही रुक गया, पानी था भरपूर
१३७९ जोशी कहता डाल दे, गाड़ी नदिया माय। नदिया में गाड़ी चली, पानी बढ़ता जाय
१३८० वर्षा मूसलधार थी, बिजली भी कड़काय। आँधी जोरों से चली, छप्पर लगे उड़ाय
१३८१ क़ुतुब कहे अब मौत से, बचना मुशकिल होय। माधव मन घबराय रहे, रक्षा कैसे होय
१३८२ समर्थ स्वामी गजानना, आप बचायें प्राण। आप बिना कोई नहीं, दूर करे मम त्राण
१३८३ हमें आसरा आप का, आपहि रखवारे। जीवन भी है आपका, मारे या तारे
१३८४ दोनों आँखें बन्द कर, छोड़ी बैल लगाम। 'जय गजानना' बोलते, पहुँच गये शेगाम

सुभेदार व्यापारी का घाटा होवे दूर

१३८५ सुभेदार एक व्यापारी, कपास का व्यापार एक साल घाटा पड़ा, रूपये दशक हजार
१३८६ चिन्ता भी छूटे नहीं, छूटे ना व्यापार। नुकसानी भरपाइ के, नाना किये प्रकार॥
१३८७ एक बार वर्धा आये, असीरकर के द्वार। वहॉँ भिखारी कर रहा, भिक्षा काजे रार
१३८८ माथे पर टोपी बड़ी, कर में लठिया होय। असीरकर जाने कहें, नहीं मानता होय
१३८९ सुभेदार के सामने, भिक्षापात्र बढ़ाय। निरखा उसको ध्यान से, गजानना दिख जाय
१३९० तन में कम्पन था मगर, दॄष्टि गहन गंभीर। सन्त गजानन सा लगे, खड़ा सामने पीर
१३९१ असमंजस में सुभेदार दे, दो पैसे की भीख। दस हजार टोटा पड़ा, मुझे और दे भीख
१३९२ सुभेदार ने दे दिये, रूपये और निकाल। फिर भी वह सन्तुष्ट नहीं, दे दे और निकाल
१३९३ सुभेदार से वह कहे, क्यों शंकित मन होय। तू मेरे पास , आशिष दूँ मैं तोय
१३९४ शिख से नख तक कर घुमा, देवे आशीर्वाद।जाने कहाँ चला गया, मिला नहीं फिर बाद
१३९५ वर्धा के बाजार रुई, बेचत सुभेदार। घाटा पूरा हो गया, बना रहा व्यापार
१३९६ सुभेदार मन सोचता, योगी गजानना। निश दिन ही रक्षा करें, श्रद्धा होय मना

वापस पहुँच गये शेगांव

१३९७ भाऊ राजाराम कवर,समाधि दर्शन आय। बालाभाऊ रोकते,पर नाही रुक पाय
१३९८ रात अंधेरी निकल गये, पत्नी बच्चे साथ। रस्ता भूले फँस गई, गाड़ी तलाव माथ
१३९९ डांटा गाड़ीवान को, जानत तू तो राह। किन्तु आज क्या हो गया, क्यों भूला तू राह॥
१४०० डॉक्टर मन में सोचते, श्री की लीला होय। बाला भाऊ बात को, मैं ना माना होय
१४०१ इसीलिये रस्ता भुला, अब जाने क्या होय। घुप अंधेरी रात वन, रक्षा कैसे होय 
१४०२ घंटी की आवाज सुनी, एक दिशा से आय। उसी दिशा जो राह मिले, गाड़ी दई बढ़ाय
१४०३ सूर्योदय होते होते, पहुँचे वे जिस गांव। पता लगाया पहुँच गये, वापस वे शेगांव
१४०४ बालाभाऊ से कहे, घटना जो घट जाय। श्री ने जाने ना दिया, अब परसादी पाय

तीरथ ऊदी प्रदक्षिणा, करे रोग उपचार

१४०५ एक रतन सा का बेटा, दिनकर नाम सुहाय। एक वर्ष की आयु में, रोग बड़ा लग जाय
१४०६ बालक सारा सूख गया, रक्त मांस ना होय। वैद्य डॉक्टर बड़े -बड़े, कुछ इलाज ना होय
१४०७ अन्तकाल आया निकट, ठंडा पड़ा शरीर। समाधि पर लेकर गया, रतन आपना वीर
१४०८ मन्नत मांगी गजानना, बाँटूगा परसाद। कृपा करो इस बाल पर, दूर करो अवसाद
१४०९ चमत्कार ऐसा हुआ, रूदन करता बाल। हाथ पैर हिलने लगे, रतन हुआ खुशहाल
१४१० प्राण दिनकरा बच गये, जय श्री गजानना। श्रद्धा से जो मांग ले, देवत गजानना
१४११ रामचन्द्र पाटिल सुता, चन्दर भागा नाम। समय प्रसूती ज्वर चढ़ा, जाने का नहि नाम 
१४१२ वैद्य डाक्टर थक गये, इलाज ना कर पाय। वैद्य गजानन ही मेरे, इसके प्राण बचाय
१४१३ भस्मी रोज लगाय के, तीरथ देत पिवाय। निष्ठा पाटिल की फली, बेटी निरोग पाय
१४१४ वात व्याधि से जानका, दर्द बहुत भुगताय। कष्ट पेट में हो रहा, चले ना कोइ उपाय
१४१५ वात दवाई लेत दबे, पुनः पुनः उठ जाय। क्रम ऐसा चलते चलते, मस्तक पर चढ़ जाय
१४१६ विचलित बुद्धी हो गई, उन्मादी व्यवहार। खाती ही रहती कभी, रहे कभी निरहार 
१४१७ कोई कहता रोग है, कोई भूत चुडैल। या कोई दुश्मन किया, जादू टोना खेल 
१४१८ जानकार लाये बहुत, गंडे भी बंधवाय। पाटिल पत्नी जानका, पैसा बहु लग जाय
१४१९ आखिर पाटिल थक गया, ऐसा करे विचार |बैद गजानन देव भी, जादुगर जानकार
१४२० गजानना की जानका, पुत्रवधू तो होय। वही करें उपचार अब, अन्य उपाय होय
१४२१ पति ने फिर जैसा कहा, करे जानका बाय। प्रदक्षिणा के वासते, रोज समाधी जाय
१४२२ कृपावन्त सदगुरु हुए, जाता वात विकार। सेवा सन्त गजानना, करे रोग उपचार
१४२३ गण गण गणात बोते बोल, जय जय गजानना। राणा हैं शेगांव के, योगी गजानना  

श्री हरिहरार्पणमस्तु शुभं भवतु

बीसवाँ अध्याय समाप्त )



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