Gajanan Maharaj

Tuesday, May 26, 2020

Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-02


जित देखे उत गजानना

Gajanan Maharaj Hindi Dohavali Adhyay-02
गजानन विजय अध्याय 02 

अध्याय दो


६९ श्री गजानना चले गये, बंकटजी बेचैन। भोजन भी भाता नहीं, बसे गजानन नैन ॥
७० जित देखे उत गजानना, चारों ओर लखाय। हर पल श्री का ध्यान करे, बछड़े का जस गाय ॥
७१ सोचे मन की बात को, किसको दूँ बतलाय। अगर पिताजी से कहूँ, हिम्मत ना हो पाय ॥
७२ बंकट ऐसी लौ लगी, श्री दर्शन हो जाय। गली गली शेगांव की, फिरै न उनको पाय ॥
७३ पिता भवानीरामजी, पूछैं क्या है त्राण। क्यों उदास कुछ तो कहो, मुख मण्डल क्यैं म्लान ॥
७४ रोग अगर कोई लगा, दो मुझको बतलाय। नहीं छिपाओ बाप से, कह दो हाल सुनाय ॥
७५ बंकट बात बनाय दे, कहे न मन की बात। गली गली शेगांव की, ढूँढत वह श्रीनाथ ॥
७६ घर पड़ौस में ही रहें, वृद्ध रामजी पंत। उनको हाल सुना दिया, सज्जन थे अत्यन्त ॥
७७ वरणन सुनकर सन्त का, रामाजी समझाय। धन्य धन्य तू बंकटा, दर्शन योगी पाय ॥
७८ यदि फिर से मिल जायं तो, मुझको भी मिलवाय। व्याकुलता बढ़ने लगी, समय बीतता जाय ॥

बोध दिया गोविन्द बुवा


७९ टाकलिकर गोविन्दजी, प्रसिद्ध कीर्तनकार। शिव मन्दिर  कीर्तन करें, भीड़ भई नर-नार ॥
८० बंकट भी सुनने चले, पीताम्बर के साथ। मन्दिर पीछे दरस दिये, तभी गजानन नाथ ॥
८१ जस चकोर को चन्द्रमा, चातक पक्षी स्वाति। महाराज को देखकर, बंकट मन हरषाती ॥
८२ विनय करें महाराज से, क्या हम भोजन लायं। मालिन के घर जाय कर, झुणका भाकर लाय ॥
८३ झुणका भाकर खाय कर, नाला दे दिखलाय। फिर पीताम्बर से कहें, तुम्बा जल भर लाय ॥
८४ नाले में जल ऊथला, तुम्बा नहीं भराय। और कहीं से साफ जल, हम भरकर ले आयं ॥
८५ महाराज ने जिद करी, और कहीं ना जाव। तुम्बे से पानी भरो, अंजुरि नहीं डुबाव ॥
८६ पीताम्बर नाले चला, लेकर तुम्बा साथ। तलवा तो डूबे नहीं, तुम्बा कौन बिसात ॥
८७ आज्ञा पालन वास्ते, तुम्बा दिया डुबाय। तुम्बा नाले डूब कर, जल से भर भर जाय ॥
८८ चकित पीताम्बर देखता, चमत्कार सा होय। पानी गन्दा नालि में, तुम्बे निरमल होय ॥
८९ योग शक्ति संशय नहीं, तुम्बा श्री को देय। झुणका भाकर खायकर, वे पानी पी लेय॥
९० भोजन दे सेवा तेरी, क्या पूरी हो जाय। रखी सुपारी जेब में, ला दे मुझे खिलाय ॥
९१ सन्तोषी हर्षित हुए, सुनकर बंकटलाल। संग सुपारी के दिये, सिक्के दोय निकाल ॥
९२ सिक्के काहे दे हमें, नहिं करते व्यापार। भाव भक्ति का ही रखो, तुम हमसे व्यवहार ॥
९३ श्री की आज्ञा पायकर, कीर्तन में रम जाय। नीम तले महाराज भी, बैठक रहे लगाय ॥
९४ कीर्तन में गोविन्द बुवा, गीता हंस सुनाय। श्लोक पढ़े आधा उधर, श्री पूरा कर जाय ॥
९५ बुवा गजानन साधु को, मन्दिर में बुलवाय। पर वे अपने स्थान से, उठते नहीं दिखाय ॥
९६ बुवा स्वयं कर जोड़कर, विनते गजानना। आप स्वयं साक्षात शिव, मन्दिर विराजना ॥
९७ या जन्मों के सुकर्म ही, उदित आज हो जाय। या कीर्तन का फल मिला, श्री का दर्शन पाय ॥
९८ अन्दर मेरे संग चलें, अब न करें गुरु देर। बिना आपके है वहां, शून्य और अंधेर ॥
९९ महाराज फिर बोलते, अंदर बाहर एक। तुम जो कीर्तन में कहा, वही आचरण नेक ॥
१०० जाओ अब कीर्तन करो, यहीं सुनूं मैं बैठ। टाकलिकर मन्दिर गये, व्यासपीठ पर बैठ ॥
१०१ व्यासपीठ पर बैठकर, करें घोषणा बोल। सुनो सभी श्रोता रतन, आप मिला अनमोल ॥
१०२ गांव आज शेगांव नहीं, पण्ढरपुर है जान। इनकी सेवा में रमो, इनकी आज्ञा मान ॥
१०३ वेद वाक्य श्री के वचन, जो लोगे यह जान। निश्चित ही यह मान लो, होगा तव कल्याण ॥
१०४ बाद कीर्तन बंकटा, हर्षित हो घर आय। पिता भवानी राम को, सब वृतान्त सुनाय ॥
१०५ पिता पुत्र ने तय किया, सद्गुरू  को घर लायं। सद्गुरू माणिक चौक में, बंकट को मिल जाय
१०६  पश्चिम माणिक चौक में, भास्कर शाम ढले। ज्ञान भानु उदयित हुआ, बंकट भाग्य खिले ॥
१०७ गौ संग ग्वाले बाल सब, घर को वापस आयं। श्री को नन्दलाला गुनें, आसपास मंडराय ॥
१०८ पक्षी कलरव कर रहे, दिया बाति जल जय। श्री को संग लिवाय के, बंकट घर को आय ॥
१०९ पिता उन्हें आनन्द से, आसन पर बिठलाय। हाथ जोड़ विनती करें, श्री जी भोजन पायं ॥
११० आप आये प्रदोष में, हैं शिवजी के रूप। पूजन का अवसर मिला, मेरे भाग्य स्वरुप ॥
१११ बिल्वपत्र एक लाय के, श्री के शीश चढ़ायं। भोजन अभी बना नहीं, कैसे भोग लगायं ॥
११२ बिना पाय भोजन अगर, लौट गजानन जायं। शिव लौटते प्रदोष में, दोष बड़ा लग जाय ॥
११३ इधर भीड़ भारी जमी, दर्शन श्री महराज।देर रसोई हो रही, चिन्तित भवानि आज ॥
११४ बनी सुबह जो पूड़ियां, थाली में रख लायं। शुद्ध भाव महाराज को, भोजन वे करवायं ॥
११५ केला मूली संतरा, बादाम खारक साथ। हार गले में डाल के, तिलक लगाया माथ ॥
११६ जो भी परसा थाल में, खुश होकर श्री खायं। भोजन कर विश्राम को, रात वहीँ रुक जायं ॥
११७ भोर भई महाराज को, मंगल स्नान कराय। उष्ण जल भरे सौ कलश, नर नारी ले आयं ॥
११८ सबको मोहित कर रहा, दृश्य मनोहारी। सब मिलकर नहला रहे, श्री को नर नारी ॥
११९ अंगराग बहुभांति तन, तेल कोई चुपड़ाय। कोई रगड़े चरण को, कोई इत्र लगाय ॥
१२० स्नानविधी के बाद में, पीताम्बर पहनाय। तिलक केशरी माथ पर,तुलसी माल चढाय ॥
१२१ घर हो जाये द्वारका, सोमवार था वार। बंकट के सौभाग्य से, शिवजी आये द्वार ॥
१२२ इच्छा पूरण हो गई, रह गये इच्छाराम। भाई बंकटलाल के, भक्त शिवा भगवान ॥
१२३ इच्छा इच्छाराम की, मन में भाव अनेक | शिवजी आये द्वार करूं, श्री पूजा अभिषेक ॥
१२४ अस्तमान सूरज हुआ, इच्छा करके स्नान। श्री का पूजन कर रहे, शिव के भक्त महान ॥
१२५ बिनती करे गजानना, मेरा हे उपवास।  प्रथम आप भोजन करें, ग्रहण करूँ मैं ग्रास ॥        
१२६ थाल निवेद सजाय कर, श्री के सम्मुख लायं। एक थाल में चार का, भोजन भरकर लायं
१२७ महाराज भोजन करें, कर दें थाली साफ।फिर कौतुक ऐसा करें, उलटी कर दें आप॥
१२८ रामदास स्वामी समर्थ, ऐसे ही इक बार। खीर खाय उलटी किये, ऐसा किया प्रकार ॥
१२९ ऐसा किया प्रकार दें, लोगों को यह सीख । भोजन का कर आग्रह, बात नहीं यह ठीक ॥
१३० इस घटना के बाद में, साफ सफाई होय। श्री का स्नान कराय के, दरशन ले हर कोय ॥
१३१ भजन मंडली आय दो, भजन रात भर गाय। चटक चटक चुटकी बजे, श्री गण गणात गाय ॥
१३२ गण गण गणात बोते बोल, गाते गजानना। इसीलिये महराज को, कहते गजानना ॥
१३३ नाम रूप की बात क्या, स्वयं ब्रम्ह के रूप। निजानन्द में लीन रहें, योगेश्वर जग भूप ॥
१३४ दर्शन को आने लगे, गांव गांव से लोग। बंकट घर मेला लगे, स्वामी समरथ योग॥
१३५ चरित गजानन सागरा, कैसे नापा जाय। कवि सुमन्त पामर मती, चरित न गाया जाय ॥
१३६ गण गण गणात बोते बोले, जय जय गजानना। राणा हैं शेगांव के, योगी गजानना ॥ 

श्री हरिहरार्पणमस्तु ॥ शुभं भवतु ॥

( दूसरा अध्याय समाप्त )